कृष्ण तथा प्रभावती गोपी

भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं से गोप-गोपियों को आनंदित करते हुए सखाओं के साथ घरों से माखन और घृत की चोरी करते थे।

श्रीकृष्ण माखन चोरी करते हुए

एक दिन उप नन्द पत्नी गोपी प्रभावती नन्द भवन में आकर यशोदा से बोली- "यशोदा रानी! तुम्हारे इस लाला ने चोरी कहाँ से सीखी है? माखन तो यह स्वयं ही चुराता फिरता है, परन्तु तुम इसे ऐसा न करने के लिए कभी शिक्षा नहीं देती। एक दिन जब मैंने शिक्षा दी, तो तुम्हारा यह ढीठ बालक मुझे चिढ़ाकर भाग गया। अरे! ब्रजराज का बेटा होकर चोरी करे, यह उचित नहीं है। गोपी प्रभावती की बात सुनकर यशोदा मैया ने कहा- "मैंने इसे डाँट लगायी है। यदि तुम इसे माखन चुराकर खाते और मुख में माखन लपेटे हुए पकड़कर मेरे पास ले आओगी तो मैं इसे अवश्य ताड़ना दूंगी और घर में बांध रखूँगी।" प्रभावती यशोदा की यह बात सुनकर घर चली गई।[1]

एक दिन श्रीकृष्ण बालकों के साथ फिर दही चुराने के लिए प्रभावती के घर में गए। सब-के-सब घर में घुस गए। छींके पर रखा हुआ गोरस हाथ से पकड़ में नहीं आ सकता, यह देखकर श्रीहरि ने स्वयं एक ओखली के ऊपर पीढ़ा रखा और ऊपर चढ़ गए, पर तब भी न पा सके। तब श्रीदामा और सुबल के साथ उन्होंने मटके पर डंडे से प्रहार किया। सारा माखन नीचे गिर गया। झट सारे ग्वालबालों सहित माधव माखन खाने लगे। भांड फूटने की ध्वनि सुनकर गोपी प्रभावती वहाँ आ पहुँची। अन्य सब बालक तो वहाँ से भाग गए, किन्तु कृष्ण का हाथ प्रभावती ने पकड़ लिया। बाल कृष्ण भयभीत होकर मिथ्या आँसू बहाने लगे। प्रभावती उन्हें लेकर नन्द भवन की ओर चल पड़ी।

जब प्रभावती नन्द भवन पहुँची तो सामने ही नन्दराय खड़े थे। उन्हें देखकर प्रभावती ने मुख पर घूँघट डाल लिया। श्रीहरि सोचने लगे- "इस तरह जाने पर तो मैया अवश्य दंड देगी। अतः भगवान ने प्रभावती के ही पुत्र का रूप धारण कर लिया। रोष से भरी प्रभावती यशोदा के पास शीघ्र जाकर बोली- "इसने मेरा दही का बर्तन फोड दिया और सारा दही लूट लिया।"

यशोदा जी ने देखा कि यह तो इसी का पुत्र है। तब वे हँसते हुए उस गोपी से बोलीं- "पहले अपने मुख से घूँघट तो हटाओ, फिर बालक के दोष बताना।" तब प्रभावती ने जैसे ही घूँघट हटाकर देखा तो उसे अपना ही बालक दिखायी दिया। उसे देखकर वह मन ही मन चकित होकर बोली- "अरे निगोड़े! तू कहाँ से आ गया। मेरे हाथ में तो ब्रज का सारा सर्वस्व था।" इस तरह बड़बड़ाती हुई वह नन्द भवन से चली गई। वहाँ उपस्थित सारे गोप, यशोदा, नन्द आदि हँसने लगे।[1]

इधर भगवान बाहर की गली में पहुँचकर फिर नन्द नन्दन बन गए और चंचल नेत्र मटकाकर, जोर-जोर से हँसते हुए उस गोपी से बोले- "अरी गोपी! यदि फिर कभी तू मुझे पकड़ेगी तो अब की बार तेरे पति का रूप धारण कर लूँगा। यह सुनकर वह गोपी आश्चर्य से चकित हो अपने घर चली गई और उस दिन से सब घरों की गोपियाँ लाज के मारे श्रीहरि का हाथ नहीं पकड़ती थीं।

एक दिन जब मैया यशोदा ताने सुन सुनकर थक गयीं तो उन्होंने कृष्ण को घर में ही बंद कर दिया। जब गोपियों ने कन्हैया को नहीं देखा तो सब के सब उलाहना देने के बहाने नंदबाबा के घर आ गयीं और नंदरानी यशोदा से कहने लगीं- "यशोदा तुम्हारे लाला बहुत नटखट हैं, ये असमय ही बछड़ों को खोल देते हैं और जब हम दूध दुहने जाती हैं तो गाये दूध तो देती नहीं, लात मारती है। इससे हमारी कोहनी भी टूटे और दुहनी भी टूटे। घर मैं कहीं भी माखन छुपाकर रखो, पता नहीं कैसे ढूँढ लेते हैं। यदि इन्हें माखन नहीं मिलता तो ये हमारे सोते हुए बच्चों को चिकोटी काटकर भाग जाते हैं। ये माखन तो खाते ही हैं साथ में माखन की मटकी भी फोड़ देते है।"

यशोदा जी कन्हैया का हाथ पकड़कर गोपियों के बीच में खड़ा कर देती हैं और कहती हैं कि- "तौल-तौल लेओ वीर, जितनों जाको खायो है, पर गाली मत दीजो, मौ गरिबनी को जायो है।" जब गोपियों ने ये सुना तो वे कहने लगीं- "यशोदा हम उलाहने देने नहीं आये हैं। आपने आज लाला को घर में ही बंद करके रखा है। हमने सुबह से ही उन्हें नहीं देखा है, इसलिए हम उलाहने देने के बहाने उन्हें देखने आए थे।" जब यशोदा ने ये सुना तो वे कहने लगीं- "गोपियों तुम मेरे लाला से इतना प्रेम करती हो, आज से ये सारे वृन्दावन के लाल हैं।"[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कृष्ण तथा प्रभावती गोपी (हिन्दी) राधाकृपा। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2015।

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