कृष्ण जन्म

विष्णु का कृष्ण अवतरण

देवकी के सातवें गर्भ में अनन्त भगवान शेष पधारे। भगवान के आदेश से योगमाया ने इस गर्भ को आकर्षित करके वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया। यह प्रचार हो गया कि देवकी का गर्भ स्त्रवित हो गया।

जब देवकी के आठवें गर्भ का समय आया तो उनका शरीर ओज से पूर्ण हो गया। कंस को विश्वास हो गया कि इस बार अवश्य ही मुझे मारने वाला विष्णु आया है। इसीलिए कारागार के आसपास पहरेदारों की संख्या बढ़ा दी गयी। भाद्रपद की अँधेरी रात की अष्टमी तिथि थी। शंख, चक्र, गदा, पद्म, वनमाला धारण किए भगवान देवकी-वसुदेव के समक्ष प्रकट हुए। भगवान का दर्शन करके माता देवकी धन्य हो गयीं। पुन: भगवान नन्हें शिशु के रूप में देवकी की गोद में आ गये। पहरेदार सो गए। वसुदेव-देवकी की हथकड़ी-बेड़ी अपने-आप खुल गयीं। भगवान के आदेश से वसुदेव उन्हें गोकुल में यशोदा की गोद में डाल आए और वहाँ से उनकी तत्काल पैदा हुई कन्या ले आए। कन्या को देवकी की शैया पर सुलाते ही हथकड़ी-बेड़ी अपने आप लग गये, कपाट बन्द हो गये और पहरेदारों को चेत आ गया।

कारागार में कन्या के रोने की आवाज़ सुनकर पहरेदारों ने कंस को देवकी के गर्भ से कन्या होने का समाचार दिया। कंस उसी क्षण अति व्याकुल होकर हाथ में नंगी तलवार लेकर बन्दीगृह की ओर दौड़ा। बन्दीगृह पहुँचते ही उसने तत्काल उस कन्या को देवकी के हाथ से छीन लिया। देवकी अति कातर होकर कंस के सामने गिड़गिड़ाने लगी- "हे भाई! तुमने मेरे छः बालकों का वध कर दिया है। इस बार तो कन्या का जन्म हुआ है। तुम्हारे काल की आकाशवाणी तो पुत्र के द्वारा होने की हुई थी। इस कन्या को मत मारो।"

देवकी के रोने गिड़गिड़ाने पर भी दुष्ट कंस का हृदय नहीं पिघला और उसने कन्या को भूमि पर पटक डालने के लिये ज्यों ही ऊपर उछाला कि कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश में उड़ गई। वह आकाश में स्थित होकर अष्टभुजा धारण करके आयुधों से युक्त हो गई और बोली- "रे दुष्ट कंस! तुझे मारने वाला तेरा काल कहीं और उत्पन्न हो चुका है। तू व्यर्थ निर्दोष बालकों की हत्या न कर।" इतना कह कर योगमाया अन्तर्ध्यान हो गईं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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