परशुराम

संक्षिप्त परिचय
परशुराम
परशुराम
अन्य नाम ऋषि जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं।
अवतार विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार
वंश-गोत्र भृगुवंश
पिता जमदग्नि
माता रेणुका
जन्म विवरण वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)।
धर्म-संप्रदाय हिंदू धर्म
परिजन 'रुमणवान', 'सुषेण', 'वसु', 'विश्वावसु' (सभी भाई)।
विद्या पारंगत धनुष-बाण, परशु।
यशकीर्ति हैहयराज के पुत्र द्वारा पिता जमदग्नि का वध कर दिये जाने के बाद परशुराम ने समस्त पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियविहीन कर दिया।
अन्य जानकारी इनका नाम तो राम था, किन्तु भगवान शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये 'परशुराम' कहलाते थे।

परशुराम राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र, विष्णु के अवतार और शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष 'परशु' प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये 'परशुराम' कहलाते थे। ये भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार कहे जाते हैं, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिना जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया, (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था।

जन्म कथा

प्राचीन काल में कन्नौज में गाधि नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया था। भृगु ने जब अपने पुत्र के विवाह के विषय में जाना तो बहुत प्रसन्न हुए तथा अपनी पुत्रवधू सत्यवती से वर माँगने को कहा। सत्यवती ने अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र जन्म की कामना की। भृगु ने उन दोनों को 'चरु' भक्षणार्थ दिये तथा कहा कि ऋतुकाल के उपरान्त स्नान करके सत्यवती गूलर के पेड़ तथा उसकी माता पीपल के पेड़ का आलिंगन करे तो दोनों को पुत्र प्राप्त होंगे। माँ-बेटी के चरु खाने में उलट-फेर हो गयी। दिव्य दृष्टि से देखकर भृगु पुनः वहाँ पधारे तथा उन्होंन सत्यवती से कहा कि तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मणोचित व्यवहार करेगा तथा तुम्हारा बेटा ब्राह्मणोचित होकर भी क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला होगा। बहुत अनुनय-विनय करने पर भृगु ने मान लिया कि सत्यवती का बेटा ब्राह्मणोचित रहेगा, किंतु पोता क्षत्रियों की तरह कार्य करने वाला होगा। सत्यवती के पुत्र जमदग्नि मुनि हुए। उन्होंने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के पाँच पुत्र हुए- 'रुमण्वान', 'सुषेण', 'वसु', 'विश्वावसु' तथा पाँचवें पुत्र का नाम 'परशुराम' था। यही क्षत्रियोचित आचार-विचार वाला पुत्र था।

पिता के आज्ञाकारी

एक बार रेणुका राजा चित्ररथ पर मुग्ध हो गयी। उसके आश्रम पहुँचने पर मुनि को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गयी। उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों को माँ की हत्या करने का आदेश दिया। किंतु कोई भी तैयार नहीं हुआ। जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़बुद्ध होने का शाप दिया। परशुराम ने तुरन्त पिता की आज्ञा का पालन किया। जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर माँगने के लिए कहा। परशुराम ने पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा और फिर अपने भाईयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम से कहा कि वो अमर रहेगा।

समस्त क्षत्रियों का संहार

एक दिन जब परशुराम बाहर गये थे तो कार्तवीर्य अर्जुन उनकी कुटिया पर आये। युद्ध के मद में उन्होंने रेणुका का अपमान किया तथा उसके बछड़ों का हरण करके चले गये। गाय रंभाती रह गयी। परशुराम को मालूम पड़ा तो क्रुद्ध होकर उन्होंने सहस्रबाहु हैहयराज को मार डाला। हैहयराज के पुत्र ने आश्रम पर धावा बोला तथा परशुराम की अनुपस्थिति में मुनि जमदग्नि को मार डाला। परशुराम घर पहुँचे तो बहुत दु:खी हुए तथा पृथ्वी को क्षत्रियहीन करने का संकल्प किया। अतः परशुराम ने इक्कीस बार पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का संहार किया। 'समंत पंचक' क्षेत्र में पाँच रुधिर के कुंड भर दिये। क्षत्रियों के रुधिर से परशुराम ने अपने पितरों का तर्पण किया। उस समय ऋचीक साक्षात प्रकट हुए तथा उन्होंने परशुराम को ऐसा कार्य करने से रोका। ऋत्विजों को दक्षिणा में पृथ्वी प्रदान की। ब्राह्मणों ने कश्यप की आज्ञा से उस वेदी को खंड-खंड करके बाँट लिया, अतः वे ब्राह्मण जिन्होंने वेदी को परस्पर बाँट लिया था, 'खांडवायन' कहलाये।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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