गणेश

भगवान गणपति

गणेश हिंदू धार्मिक ग्रंथ की मान्यताओं के अनुसार भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध देवता है इनकी माता देवी पार्वती तथा पिता भगवान शिव है। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य से पहले इनकी पूजा की जाती है। गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है। इनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गणपति है, हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि बाई सूंड वाले गणपति ज्यादा शुभ माने जाते है।

कथा

पुराणों में गणेश के संबंध में अनेक आख्यान वर्णित है। एक के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जल कर भस्म हो गया। इस पर दुःखी पार्वती से ब्रह्मा ने कहा- जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो। पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश ‘गजानन’ बन गए। दूसरी कथा के अनुसार गणेश को द्वार पर बिठा कर पार्वती स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेश ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उसका सिर काट दिया। एक दंत होने के संबंध में कथा मिलती है कि शिव-पार्वती अपने शयन कक्ष में थे और गणेश द्वार पर बैठे थे। इतने में परशुराम आए और उसी क्षण शिवजी से मिलने का आग्रह करने लगे। जब गणेश ने रोका तो परशुराम ने अपने फरसे से उनका एक दांत तोड़ दिया। एक के अनुसार आदिम काल में कोई यक्ष राक्षस लोगों को दुःखी करता था। कार्यों को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए उसे अनुकूल करना आवश्यक था। इसलिए उसकी पूजा होने लगी और कालांतर में यही विघ्नेशवर या विघ्न विनायक कहलाए। जो विद्वान गणेश को आर्येतर देवता मानते हुए उनके आर्य देव परिवार में बाद में प्रविष्ट होने की बात कहते हैं, उनके अनुसार आर्येतर गण में हाथी की पूजा प्रचलित थी। इसी से गजबदन गणेश की कल्पना और पूजा का आरंभ हुआ। यह भी कहा जाता है कि आर्येतर जातियों में ग्राम देवता के रूप में गणेश का रक्त से अभिषेक होता था। आर्य देवमंडल में सम्मिलित होने के बाद सिन्दूर चढ़ाना इसी का प्रतीक है। प्रारंभिक गणराज्यों में गणपति के प्रति जो भावना थी उसके आधार पर देवमंडल में गणपति की कल्पना को भी एक कारण माना जाता है।

भगवान गणेश के निम्नलिखित बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।

गणेश के नाम
सुमुख एकदन्त कपिल गजकर्णक
लम्बोदर विकट विघ्ननाशक विनायक
गणाध्यक्ष द्वैमातुर गणाधिप गजानन



टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 43 |


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