जयंती (इंद्र की पुत्री)

Disamb2.jpg जयंती एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जयंती (बहुविकल्पी)

जयंती हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के अनुसार ऋषभदेव की पत्नी थी।[1] ये देवेन्द्र इन्द्र की पुत्री थी, जिसे 'देवसेना' या 'जयनी' भी कहते हैं।

  • ऋषभदेव के तेज, पराक्रम व योगबल से प्रभावित होकर देवेन्द्र इन्द्र ने अपनी पुत्री जयंती का विवाह उनसे किया, जिससे ऋषभदेव के सौ पुत्र उत्पन्न हुए।
  • इनके सबसे बड़े पुत्र का नाम भरत था, भरत से छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक विदर्भ और कीकट थे, जो पृथक-पृथक देशों के नरेश थे। इनके देश इनके नाम से ही प्रसिद्ध हुए। यह सभी नरेश तपस्वी व भगवद्भक्त थे। इन राजकुमारों के अतिरिक्त, कवि, हरि, अन्तरीक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस, और करभाजन नाम के राजकुमार योगी एवं संन्यासी हो गए, बाकी इक्यासी पुत्र वेदज्ञ वेदान्ती, कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे।
  • जयंती को शुक्र के यहाँ सेवा करने के लिए भेजा गया था, जब एक हजार वर्षों तक धूम्र व्रत कर रहे थे। शुक्र उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और उसके पतिरूप में उनके साथ दस वर्षो तक रहे।[2] जयन्ती के गर्भ से देवयानी का जन्म हुआ था।[3][4]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण पृ. 6
  2. ब्रह्मां. 3.72.150, 156; 73.3; वायु. 97.149;99.3
  3. मत्स्य. 47.114. 88; ब्रह्मां. 3.1.86
  4. पौराणिक चरित्र |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 182 |

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