नाभिराज

नाभिराज हिन्दू मान्यताओं तथा पुराण उल्लेखानुसार महाराज अभिनेत्र के पुत्र थे।[1]

  • महाराज प्रियव्रत के पुत्र अभिनेत्र के समय में सब ठीक-ठीक रहा, परन्तु उनके पुत्र नाभिराज के जमाने में बहुत-सी प्राकृतिक हलचलें आरम्भ हुईं। चूंकि वह काल हमारी पृथ्वी के निर्माण के लिए नया था, इसलिए उसमें जल्दी-जल्दी परिवर्तन हो रहे थे।
  • नाभिराज के जमाने में धरती पर जमी हुई बर्फ ही सूर्य की गर्मी से पिघलकर पृथ्वी सींचती थी, किन्तु अब आकाश पर काले बादल भी मंडराने लगे और कुछ ही दिनों बाद मनुष्य जाति ने ऐसी प्रबल वर्षा के दर्शन किये कि वह भय से भर उठे। बिजलियां कड़कने लगीं, बादल गरजने लगे और मूसलाधार पानी बरसने लगा।
  • ताल-तलैया, बर्फीली नदियां आदि उफन उठीं। चारों ओर एक प्रलय-सी मच गयी। आंधी, बिजली और बाढ़ के पानी से सारे कल्पवृक्ष सूख गये। बहुत-सी जानें भी गयीं। इसलिए नाभिराज अपनी प्रजा को लेकर वहाँ से किसी सुरक्षित स्थान की ओर चलने लगे। उन्हें पता लगा कि उनके कुल के महान पुरुष मनु महाराज ने कश्मीर में तपस्या की थी। इसलिए वे उधर ही जा पहुँचे।
  • कहा जाता है कि राजा नाभि ने ही कश्मीर से लेकर मगध तक की भूमि अपने अधिकार में कर ली और अपने राज्य रूपी शरीर की नाभि स्थल में अयोध्या बसायी।
  • राजा नाभि के समय में ही धनुष का आविष्कार हुआ। उन्होंने ही पहली बार विधिवत हल से खेती करायी। उनके समय में औजार और हथियार यद्यपि हड्डियों और पत्थरों से बनते थे, परन्तु वे अपने पहले वाले जमाने से मजबूत और नुकीले बनते थे। धातुओं की जान-पहचान भी राजा नाभि के जमाने में आरम्भ हुई।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत कथा -अमृतलाल नागर पृ. 206

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः