सोम

Disamb2.jpg सोम एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सोम (बहुविकल्पी)

सोम चन्द्रमा का ही एक नाम है। पुराणों में कहीं-कहीं चन्द्रमा को अत्रि-सुत, कहीं धर्मपुत्र, कहीं समुद्र के पुत्र और कहीं प्रभाकर का पुत्र कहा गया है।[1] महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु सोम पुत्र वर्चा के ही अवतार थे।

  • चंद्रमा में सोमरस के कतिपय गुणों का आरोप होने लग गया था। पुराणानुसार चन्द्रमा में अमृत है। शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा कला-कला बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में एक-एक कला करके देवता लोग 15 कला तो पी जाते हैं, 16वीं कला अमावस्या को जल और औषधियों में प्रवेश कर जाती है। अत: चन्द्रमा को औषधिपति कहते हैं। चन्द्रमा वनस्पतियों का स्वामी, यज्ञों और औषधियों का अधिष्ठाता भी बन बैठा। अत: चन्द्रमा का नाम सोम पड़ गया।
  • सोम के पुत्र का नाम 'वर्चा' था। महाभारत के अनुसार अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र थे। इन्हें सोम के पुत्र 'वर्चा' का अवतार भी माना जाता है। धारणा है कि समस्त देवताओं ने अपने पुत्रों को अवतार रूप में धरती पर भेजा था, परंतु सोम देव ने कहा कि- "वे अपने पुत्र का वियोग सहन नहीं कर सकते, अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए।" इसीलिए अभिमन्यु महाभारत युद्ध में अल्प आयु में ही वीरगति को प्राप्त हुए।
  • विष्णुपुराण के अनुसार यह ब्राह्मणों के राजा हैं, लेकिन बृहदारण्य ने इन्हें क्षत्रिय कहा है।
  • रोहिणी को अधिक चाहने के कारण दक्ष के शाप से इन्हें राजयक्ष्मा हो गया था, किंतु दक्ष ने अपनी कन्या की प्रार्थना पर चंद्रमा के 'क्षय' को अस्थायी कर दिया, जिससे वह पंद्रह दिन घटता और पंद्रह दिन बढ़ता है।
  • देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के साथ रमण करने के कारण शंकर ने त्रिशूल से इनके शरीर के दो भाग कर दिये और इन्हें 'भग्नात्मा' की उपाधि मिल गई।[2][1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 539 |
  2. विष्णुपुराण, बृहरारण्यक आदि।

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