करभाजन

करभाजन भागवतपुराणानुसार ऋषभदेव की जयन्ती नामक पत्नी से उत्पन्न आत्मसमान सौ पुत्रों में से एक था। ऋषभदेव का यह पुत्र परम भागवत था। करभाजन ने भगवान विष्णु के भिन्न-भिन्न रूपों का वर्णन किया है, जिसकी उपासना भिन्न-भिन्न अवसरों तथा समय पर की जाती है।[1][2]

  • ऋषभदेव ने अपने देश 'अजनाभखण्ड' को कर्मभूमि मानकर लोक संग्रह के लिये कुछ काल गुरुकुल में वास किया। गुरुदेव को यथोचित दक्षिणा देकर गृहस्थ में प्रवेश करने के लिये उनकी आज्ञा ली। फिर लोगों को गृहस्थ धर्म की शिक्षा देने के लिये देवराज इन्द्र की उनकी कन्या जयन्ती से विवाह किया तथा श्रौत-स्मार्त्त दोनों प्रकार के शास्त्रोपदिष्ट कर्मों का आचरण करते हुए उसके गर्भ से अपने ही समान गुण वाले सौ पुत्र उत्पन्न किये।
  • महायोगी भरत जी ऋषभदेव के सबसे बड़े और सबसे अधिक गुणवान पुत्र थे। उन्हीं के नाम से लोग इस अजनाभखण्ड को ‘भारतवर्ष’ कहने लगे थे।[3]
  • भरत से छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इंद्रस्पृक, विदर्भ और कीकट -ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रमिल, चमस और करभाजन - ये नौ राजकुमार भावगत धर्म का प्रचार करने वाले, बड़े भगवद्भक्त थे।
  • इनसे छोटे जयन्ती के इक्यासी पुत्र पिता की आज्ञा का पालन करने वाले, अति विनीत, महान वेदज्ञ और निरन्तर यज्ञ करने वाले थे। वे पुण्य कर्मों का अनुष्ठान करने से शुद्ध होकर ब्राह्मण हो गये थे।[4]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवतपुराण 5.4.11; 11.2.21; 20-42
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 87 |
  3. श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 1-9
  4. श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 10-19

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