उर्वशी

हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार सुरलोक की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी उर्वशी स्वर्ग की सर्वसुन्दर अप्सरा थी। नारायण की जंघा से उर्वशी की उत्पत्ति मानी जाती है। पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था।

  • एक बार इन्द्र की सभा में नाचते समय राजा पुरूरवा के प्रति आकृष्ट हो जाने के कारण ताल बिगड़ गया। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर मर्त्यलोक में रहने का अभिशाप दे दिया।
  • मर्त्यलोक में उर्वशी ने पुरूरवा को अपना पति चुना किन्तु शर्त यह रखी कि यदि वह पुरू को नग्न अवस्था में देख ले, या पुरूरवा उसकी इच्छा के प्रतिकूल समागम करें अथवा उसके दो भेष स्थानान्तरित कर दिये जायँ तो वह उनसे सम्बन्ध-विच्छेद कर स्वर्गलोक जाने के लिए स्वतन्त्र हो जायेगी।

महाभारत की कथा

अर्जुन पर मोहित होना

एक दिन जब चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, 'हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।'

अर्जुन को शाप

अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्त्वहीन रहोगे।' इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई। जब इन्द्र को इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तो वे अर्जुन से बोले, 'वत्स! तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था। उर्वशी का यह शाप भी भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा। अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्त्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्त्व की प्राप्ति हो जायेगी।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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