मान्धाता

मांधाता इक्ष्वाकु वंशी राजा थे, जो अयोध्या पर राज्य करते थे। ये युवनाश्व और गौरी के पुत्र थे। यादव नरेश शशबिंदु की कन्या बिंदुमती इनकी पत्नी थीं, जिनसे मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और 50 कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं।[1]


पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथानुसार मांधाता संपूर्ण पृथ्वी को हस्तगत कर स्वर्ग जीतना चाहते थे। इंद्र सहित देवता बहुत घबरा गये। उन्होंने मांधाता को आधा देवराज्य देना चाहा, पर वे नहीं माने। वे संपूर्ण इंद्रलोक के इच्छुक थे। इंद्र ने कहा-

"अभी तो सारी पृथ्वी ही तुम्हारे अधीन नहीं है, लवणासुर तुम्हारा कहा नहीं मानता।"


मांधाता लज्जित होकर मृत्युलोक में लौट आये। उन्होंने लवण के पास दूत भजा, जिसे उसने खा लिया। फिर दोनों ओर की सेनाओं का युद्ध हुआ। लवण ने अपने त्रिशूल से राजा मांधाता और उसकी सेना को भस्म कर दिया।[2]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 413 |

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 413 |
  2. वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 67, श्लोक 5-26

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