हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा "जन्मत्रयी" के तत्त्ववेत्ता हैं, जिन्हें गर्भावस्था में ही अपने विगत दो जन्मों का ज्ञान हो गया था।
- वैदिक उल्लेखानुसार सामान्य मनुष्यों की भाँति जन्म न लेने की इच्छा से इन्होंने माता का उदर फाड़कर उत्पन्न होने का निश्चय किया। किंतु माता द्वारा अदिति का आवाहन करने और इंद्र से तत्त्वज्ञानचर्चा होने के कारण ये वैसा न कर सके। तब यह श्येन पक्षी के रूप में गर्भ से बाहर आए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऋ. 4.27.1
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