मयासुर

मयासुर अथवा मय, कश्यप और दुन का पुत्र तथा नमुचि का भाई था इसकी दो पत्नियाँ - हेमा और रंभा थीं जिनसे पाँच पुत्र तथा तीन कन्याएँ हुईं।

यह एक प्रसिद्ध दानव एवं यह ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र का आचार्य था। मय ने दैत्यराज वृषपर्वन के यज्ञ के अवसर पर बिंदुसरोवर के निकट एक विलक्षण सभागृह का निर्माण कर अपने अद्भुत शिल्पशास्त्र के ज्ञान का परिचय दिया था। मयासुर ने एक अमृतकुंड भी बनवाया था। क्योंकि जब शंकर ने त्रिपुरों को भस्म कर असुरों का नाश कर दिया तब मयासुर ने अमृतकुंड से सभी को जीवित किया था। किंतु विष्णु ने उसके इस प्रयास को विफल कर दिया। ब्रह्मपुराण [1]के अनुसार इंद्र द्वारा नमुचि का वध होने पर इसने इंद्र को पराजित करने के लिये तपस्या द्वारा अनेक माया विद्याएँ प्राप्त कर लीं। भयग्रस्त इंद्र ब्राह्मण वेश बनाकर उसके पास गए और छलपूर्वक मैत्री के लिये उन्होंने अनुरोध किया तथा असली रूप प्रकट कर दिया। इसपर मय ने अभयदान देकर उन्हें माया विद्याओं की शिक्षा दी। [2]

महाभारत में अज्ञातवास के दौरान खांडव वन का विनाश करते समय कृष्ण और अर्जुन ने मायासुर को जीवनदान दे दिया था। मायासुर अर्जुन का ऋणी हो गया और उसने यह वायदा किया कि वह उन्हें अपनी सेवाएं उपलब्ध करवाएगा। इसी वायदे को पूरा करने के लिए मरीचिका और भ्रम जाल में माहिर मायासुर ने इन्द्रप्रस्थ महल में खूबसूरत परंतु मिथ्या वास्तुकारी की, जिसे 'मायासभा' भी कहा जाता है। वास्तुकारी के इस भ्रम जाल में उलझकर दुर्योधन भी तालाब में गिर गया था, क्योंकि उसने तालाब को जमीन समझ लिया था। माया दानव ने सोने, चांदी और लोहे के तीन शहर जिसे 'त्रिपुरा' कहा जाता है, का निर्माण किया था। त्रिपुरा को बाद में स्वयं भगवान शिव ने ध्वस्त कर दिया था।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्रह्मपुराण, 124
  2. त्रेता युग के मयासुर ने दिया था अमेरिकी सभ्यता को जन्म (हिन्दी) SPEAKINGTREE.IN। अभिगमन तिथि: 24दिसम्बर, 2015।

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