उर्वरा

उर्वरा हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के अनुसार एक अप्सरा थी, जो देवलोक में नृत्य करती थी।[1]

महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार जब अष्टावक्र उत्तरोत्तर दिशा की जा रहे थे, तब कुछ दूर जाने पर उन्होंने कुबेर की अलकापुरी का सुवर्णमय द्वार देखा, जो दिव्य दीप्ति से देदीप्यमान हो रहा था। वहीं महात्मा कुबेर की कमल पुष्पों से सुशोभित एक बावड़ी देखी, जो गंगा जी के जल से परिपूर्ण होने के कारण मन्दाकिनी नाम से विख्यात थी। वहाँ जो उस पद्मपूर्ण पुष्करिणी की रक्षा कर रहे थे, वे सब मणिभद्र आदि राक्षस भगवान अष्टावक्र को देखकर उनके स्वागत के लिये उठकर खड़े हो गये। मुनि ने भी उन भयंकर पराक्रमी राक्षसों के प्रति सम्मान प्रकट किया और कहा- "आप लोग शीघ्र ही धनपति कुबेर को मेरे आगमन की सूचना दे दें।" वे राक्षस वैसा करके भगवान अष्टावक्र से बोले- "प्रभो! राजा कुबेर स्वयं ही आपके निकट पधार रहे हैं। आपका आगमन और इस आगमन का जो उद्देश्य है, वह सब कुछ कुबेर को पहले से ही ज्ञात है। देखिये, ये महाभारत धनाध्यक्ष अपने तेज से प्रकाशित होते हुए आ रहे हैं।"

तदनन्तर विश्रवा के पुत्र कुबेर ने निकट आकर निन्दारहित ब्रह्मर्षि अष्टावक्र से विधिपूर्वक कुशल समाचार पूछते हुए कहा- "ब्राह्मन! आप सुखपूर्वक यहाँ आये हैं न? बताइये मुझसे किस कार्य की सिद्धि चाहते हैं? आप मुझसे जो-जो कहेगे, वह सब पूर्ण करूंगा। द्विजश्रेष्ठ! आप इच्छानुसार मेरे भवन में प्रवेश कीजिये और यहाँ का सत्कार ग्रहण करके कृतकृत्य हो यहाँ से निर्विध्न यात्रा कीजियेगा।" ऐसा कहकर कुबेर ने विप्रवर अष्टावक्र को साथ लेकर अपने भवन में प्रवेश किया और उन्हें पाद्य, अर्ध्य तथा अपना आसन दिया। जब कुबेर और अष्टावक्र दोनों वहाँ आराम से बैठ गये, तब कुबेर के सेवक मणिभद्र आदि यक्ष, गन्धर्व और किन्नर भी नीचे बैठ गये। उन सब के बैठ जाने पर कुबेर ने कहा- "आपकी इच्छा हो तो उसे जानकर यहाँ अप्सराएं नृत्य करें; क्योंकि आपका आतिथ्य सत्कार और सेवा करना हम लोगों का परम कर्तव्य है। तब मुनि ने मधुर वाणी में कहा- "तथास्तु-ऐसा ही हो।" तदनन्तर उर्वरा, मिश्रकेषी, रम्भा, उर्वशी, अलम्बुशा, घृताची, चित्रा, चित्रांगदा, रुचि, मनोहरा, सुकेशी, सुमुखी, हासिनी, प्रभा, विद्युता, प्रशमी, दान्ता, विद्योता और रति -ये तथा और भी बहुत-सी शुभलक्षणा अप्सराएं नृत्य करने लगीं और गन्धर्वगण नाना प्रकार के बाजे बजाने लगे।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 24 |

  1. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 19 श्लोक 39-63
  2. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 19 श्लोक 16-38, महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 19 श्लोक 39-63

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