भीम

Disamb2.jpg भीम एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- भीम (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
भीम
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अन्य नाम वृकोदर, भीमसेन
अवतार पवन का अंशावतार
वंश-गोत्र चंद्रवंश
कुल यदुकुल
पिता पाण्डु
माता कुन्ती, माद्री(विमाता)
जन्म विवरण कुन्ती द्वारा पवन का आवाहन करने से प्राप्त पुत्र भीम
समय-काल महाभारत काल
परिजन भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कर्ण
विवाह द्रौपदी, हिडिंबा, बलन्धरा
संतान द्रौपदी से श्रुतसोम और हिडिंबा से घटोत्कच नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई।
विद्या पारंगत गदा युद्ध में पारंगत
महाजनपद कुरु
शासन-राज्य हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ
मृत्यु भीम बहुत खाते थे और दूसरों को कुछ भी न समझकर अपने बल की डींग हाँका करते थे; इसी कारण स्वर्ग जाते समय उनकी मृत्यु हो गई।
संबंधित लेख महाभारत

भीम अथवा 'भीमसेन' महाभारत के प्रसिद्ध पाँच पांडवों में से दूसरे थे। उनमें दस हज़ार हाथियों का बल था और वह गदा युद्ध में पारंगत थे। दुर्योधन की ही तरह भीम ने भी गदा युद्ध की शिक्षा श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम से पाई थी। भीम ने ही दुर्योधन और दुःशासन सहित गांधारी के सौ पुत्रों को मारा था। द्रौपदी के अतिरिक्त भीम की एक अन्य पत्नी का नाम हिडिंबा था, जिससे उनका परमवीर पुत्र घटोत्कच था। घटोत्कच ने इन्द्र द्वारा कर्ण को दी गई अमोघ शक्ति को अपने ऊपर चलवाकर अर्जुन के प्राणों की रक्षा की थी। भीम बलशाली होने के साथ-साथ बहुत अच्छे रसोइया भी थे।

परिचय

हिन्दू धर्म के महाकाव्य 'महाभारत' के अनुसार भीम पाण्डवों में दूसरे स्थान पर थे। वे पवनदेव के वरदान स्वरूप कुन्ती से उत्पन्न हुए थे, लेकिन अन्य पाण्डवों के विपरीत भीम की प्रशंसा पाण्डु द्वारा की गई थी। सभी पाण्डवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। उनके पौराणिक बल का गुणगान पूरे काव्य में किया गया है, जैसे- सभी गदाधारियों में भीम के समान कोई नहीं है और बल में तो वे दस हज़ार हाथियों के समान हैं। युद्ध कला में पारंगत और सक्रिय, जिन्हें यदि क्रोध दिलाया जाए जो कई धृतराष्ट्रों को वे समाप्त कर सकते हैं। सदैव रोषरत और बलवान, युद्ध में तो स्वयं इन्द्र भी उन्हें परास्त नहीं कर सकते।" वनवास काल में इन्होंने अनेक राक्षसों का वध किया, जिसमें बकासुर एवं हिडिंब आदि प्रमुख हैं एवं अज्ञातवास में विराट नरेश के साले कीचक का वध करके द्रौपदी की रक्षा की। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में राजाओं की कमी होने पर उन्होंने मगध के शासक जरासंघ को परास्त करके 86 राजाओं को मुक्त कराया। द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए उन्होंने दुःशासन की छाती फाड़ कर उसका रक्तपान किया। महाभारत के युद्ध में भीम ने ही सारे कौरव भाईयों का वध किया था। उन्हीं के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध का अंत हो गया।

हत्या के प्रयास

भीम द्वारा दु:शासन वध
दुर्योधन द्वारा
भीम के अपरिमित बल से त्रस्त तथा ईर्ष्यालु होकर दुर्योधन बाल्यवस्था में जलविहार के बहाने पांडवों को नदी के तट पर ले गया था। भोजन में कालकूट विष खिलाकर दुर्योधन ने भीमसेन को लताओं इत्यादि से बांधकर नदी में फेंक दिया। शेष पांडव थककर सो गये थे, अत: प्रात: भीम को वहाँ न देख समझे कि वह उनसे पहले ही घर वापस चले गये हैं।
भीम-दुर्योधन युद्ध
भीम जल में डूबकर नागलोक पहुँच गये। वहाँ नागों के दर्शन से उनका विष उतर गया और उन्होंने नागों का नाश प्रारंभ कर दिया। घबराकर उन्होंने वासुकि से समस्त वृत्तांत कह सुनाया। वासुकि तथा नागराज आर्यक (भीम के नाना के नाना) ने भीम को पहचानकर गले से लगा लिया, साथ ही प्रसन्न होकर उन्हें उस कुण्ड का जल पीने का अवसर दिया, जिसका पान करने से एक हज़ार हाथियों का बल प्राप्त होता है। भीम ने वैसे आठ कुण्डों का रसपान करके विश्राम किया। तदनंतर आठ दिवस बाद वह सकुशल घर पहुँचे। दुर्योधन ने पुन: उन्हें कालकूट विष का पान करवाया, किंतु भीम के पेट में वृक नामक अग्नि थी जिससे विष पच जाता था तथा उसका कोई प्रभाव नहीं होता था। इसी कारण वह वृकोदर कहलाते थे। दुर्योधन ने एक बार भीम की शैया पर सांप भी छोड़ था।

महाभारत के चौदहवें दिन की रात्रि में भी युद्ध होता रहा। उस रात पांडवों ने द्रोण पर आक्रमण किया था। युद्ध में भीम ने घूंसों तथा थप्पड़ों से ही कलिंग राजकुमार का, जयरात तथा धृतराष्ट्र-पुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध कर दिया। इसके अतिरिक्त भी बाह्लीक, दुर्योधन के दस भाइयों, शकुनि के पांच भाइयों तथा सात रथियों को भी उन्होंने सहज ही मार डाला।[1]

धृतराष्ट्र द्वारा

युद्ध के भयंकर कांड का समापन योद्धाओं की मां, बहन, पत्नियों के रुदन तथा मृत वीरों की अंत्येष्टि क्रिया से हुआ। इसी निमित्त हस्तिनापुर पहुँचने पर धृतराष्ट्र को रोती हुई द्रौपदी, पांडव, सात्यकि तथा श्रीकृष्ण भी मिले। यद्यपि व्यास तथा विदुर धृतराष्ट्र को पर्याप्त समझ चुके थे कि उनका पांडवों पर क्रोध अनावश्यक है। इस युद्ध के मूल में उनके प्रति अन्याय कृत्य ही था, अत: जनसंहार अवश्यभावी था तथापि युधिष्ठिर को गले लगाने के उपरांत धृतराष्ट्र अत्यंत क्रोध में भीम से मिलने के लिए आतुर हो उठे। श्रीकृष्ण उनकी मनोगत भावना जान गये, अत: उन्होंने भीम को पीछे हटा, उनके स्थान पर लोहे की आदमक़द प्रतिमा धृतराष्ट्र के सम्मुख खड़ी कर दी।

धृतराष्ट्र में दस हज़ार हाथियों का बल था। वे धर्म से विचलित हो भीम को मार डालना चाहते थे, क्योंकि उसी ने अधिकांश कौरवों का हनन किया था। अत: लौह प्रतिमा को भीम समझकर उन्होंने उसे दोनों बांहों में लपेटकर पीस डाला। प्रतिमा टूट गयी किंतु इस प्रक्रिया में उनकी छाती पर चोट लगी तथा मुंह से ख़ून बहने लगा, फिर भीम को मरा जान उसे याद कर रोने भी लगे। सब अवाक देखते रह गये। श्रीकृष्ण भी क्रोध से लाल-पीले हो उठे। बोले- "जैसे यम के पास कोई जीवत नहीं रहता, वैसे ही आपकी बांहों में भी भीम भला कैसे जीवित रह सकता था। आपका उद्देश्य जानकर ही मैंने आपके बेटे की बनायी भीम की लौह-प्रतिमा आपके सम्मुख प्रस्तुत की थी। भीम के लिए विलाप मत कीजिये, वह जीवित है।" तदनंतर धृतराष्ट्र का क्रोध शांत हो गया तथा उन्होंने सब पांडवों को बारी-बारी से गले लगा लिया।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, आदिपर्व, 127, 128।– द्रोणपर्व, 155।20-46, 157
  2. महाभारत, स्त्रीपर्व, 12, 13।-

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