हस्तिनापुर

हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट स्थित महाराज हस्ती का बसाया हुआ एक प्राचीन नगर था, जो कौरवों और पांडवों की राजधानी थी। इसका महाभारत में वर्णित अनेक घटनाओं से संबंध है। महाभारत से जुड़ी सारी घटनाएँ हस्तिनापुर में ही हुई थीं। अभी भी यहाँ महाभारत काल से जुड़े कुछ अवशेष मौजूद हैं। यहाँ से प्राप्त अवशेषों में कौरवों-पांडवों के महलों और मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं। हस्तिनापुर को चक्रवर्ती सम्राट भरत की भी राजधानी माना जाता है। यहाँ स्थित 'पांडेश्वर महादेव मंदिर' की काफ़ी मान्यता है। कहा जाता है यह वही मंदिर है, जहाँ पांडवों की रानी द्रौपदी पूजा के लिए जाया करती थी। पौराणिक काल में हस्तिनापुर के राजा का नाम अधिसीम कृष्ण था।

स्थिति तथा स्थापना

मेरठ से 22 मील उत्तर-पूर्व में गंगा की प्राचीन धारा के किनारे हस्तिनापुर बसा हुआ है। हस्तिनापुर महाभारत के समय में कौरवों की वैभवशाली राजधानी के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध था। प्राचीन नगर गंगा तट पर स्थित था, किन्तु अब नदी यहाँ से कई मील दूर हट गई है। गंगा की पुरानी धारा जिसे 'बूढ़ी गंगा' कहते हैं, यहाँ के प्राचीन टीलों के समीप बहती है। पौराणिक किंवदंती के अनुसार नगर की स्थापना पुरुवंशी वृहत्क्षत्र के पुत्र हस्तिन् ने की थी और उसी के नाम पर यह नगर हस्तिनापुर कहलाया। हस्तिन् के पश्चात् अजामीढ़, दक्ष, संवरण और कुरु क्रमानुसार हस्तिनापुर में राज्य करते रहे। कुरु के वंश में ही शांतनु और उनके पौत्र पांडु तथा धृतराष्ट्र हुए, जिनके पुत्र पाण्डव और कौरव कहलाए।[1]

इतिहास

महाभारतकालीन महानगरों की श्रेणी में हस्तिनापुर भी आता था। इसकी स्थापना 'हस्तिन्' नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी, इसीलिये इसे 'हस्तिनापुर' कहा जाता था। हस्तिनापुर में युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी सहित अपना सब कुछ हार गए थे। पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर श्रीकृष्ण यहीं धृतराष्ट्र की सभा में आए थे। अपने पिता शांतनु की सत्यवती से विवाह करने की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म पितामह ने अपना उत्तराधिकार छोड़ने और आजीवन अविवाहित रहने का प्रण यहीं पर किया था। द्रौपदी से विवाह के बाद कुछ समय के लिए पांडवों ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया था, किंतु महाभारत युद्ध के बाद उन्होंने हस्तिनापुर को ही राजधानी रखा।

विशाल नगर

महाभारत के युद्ध के समय हस्तिनापुर बड़ा विशाल नगर था। महाभारत आदिपर्व में इसका वर्णन इस प्रकार है-

'नगरं हास्तिनपुरं शनैः प्रविविशुस्तदा। पांडवानागतांञ्छ्रुत्वा त्वा नागरास्तु कुतूहालात्, मंडयांचकिरेतत्र नगरं नागसाह्वयम। मुक्तपुष्पावकीर्ण तज्जलसिक्तं तु सर्वश:, घूषितं दिव्यघूपेन मंडनैश्चापि संवृतम्। पताकोछ्रितमाल्यमं च पुरमप्रतिमंबभौ, शंबभेरीनिनादैश्चनागवादित्रनि:स्वनै:। कौतूहलेन नगरं दीप्यमानमिवाभवत, तत्र ते पुरुषव्याघ्रा: दु:खशोकविनाशना:।'[2]

महाभारतकालीन हस्तिनापुर

महाभारत में इस नगर का खुला वर्णन मिलता है। इसके अनुसार विभिन्न शस्त्रों द्वारा सुरक्षित होने के कारण इस पुर के भीतर शत्रुओं का प्रवेश दुष्कर था। नगर के परकोटे में बने गोपुर (दरवाज़े) ऊँचे थे। नगर का भीतरी भाग राजमार्गों द्वारा विभक्त था। सड़कों के दोनों किनारों पर महल और बाज़ार सुशोभित थे। राजमहल नगर के बीच में स्थित था। इसमें अनेक सरोवर और उद्यान थे। नागरिक धर्मनिरत, होमपरायण, यज्ञादि में श्रद्धा रखने वाले, वर्णाश्रम-व्यवस्था के पोषक और धन-धान्य से सम्पन्न थे। सूत- मागध और बन्दी अपने-अपने कर्म में निरत थे। इनके द्वारा नगर की शोभा इतनी बढ़ गई थी कि वह इन्द्रलोक के समान सुन्दर लगता था।

कहा जाता है कि महाभारत के समय हस्तिनापुर राज्य की उत्तरी सीमा 'शुक्करताल' (मुज़फ़्फ़रनगर ज़िला), दक्षिणी सीमा 'पुष्पवटी'[3] और पश्चिमी सीमा 'वारणावत[4] तक थी। पूर्व की ओर गंगा प्रवाहित होती थी। गढ़मुक्तेश्वर शायद यहाँ का एक उपनगर था और मेरठ या 'मयराष्ट्र' भी इसकी परिसीमा के भीतर स्थित था।[5] मेरठ से 15 मील उत्तर-पूर्व में स्थित 'मवाना' (मुहाना) नामक ग्राम को हस्तिनापुर का प्रमुख द्वार कहा जाता है।[6] महाभारत आदिपर्व[7] में हस्तिनापुर के वर्धमान नामक पुरद्वार का उल्लेख है। पांडु की मृत्यु के पश्चात् शतश्रंग से हस्तिनापुर आते समय कुंती अपने पुत्रों सहित इसी द्वार से राजधानी में प्रविष्ट हुईं थी[1]-

'सात्वदीर्घेण कालेन सम्प्राप्ता: कुरुजांगलम्, वर्धमानपुरद्वारमाससाद यश-स्विनी।'

पुराण उल्लेख

पुराणों में कहा गया है कि जब गंगा की बाढ़ के कारण यह पुर विनष्ट हो गया, उस समय पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी चले आये थे। यह घटना झूठी नहीं मानी जा सकती। हस्तिनापुर और कौशाम्बी में जो खुदाइयाँ हाल में हुई हैं, उनसे इसकी पुष्टि हो चुकी है। अब विद्वान इस बात को मानने लगे हैं कि गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को सचमुच ही किसी समय बहा दिया था। कौशाम्बी के कुछ प्राचीन बर्तन बनावट में हस्तिनापुर के बर्तनों के तुल्य हैं। इससे प्रमाणित होता है कि गंगा की बाढ़ के कारण पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी में बस गये थे। हस्तिनापुर की आधुनिक खुदाइयों ने वहाँ की प्राचीन कला और संस्कृति पर प्रकाश डाला है। वहाँ के नागरिक अपने बर्तनों पर भूरे रंग की पालिश चढ़ाते थे। यह प्रथा मथुरा, इन्द्रप्रस्थ तथा महाभारतकालीन अन्य नगरों में भी प्रचलित थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका सामाजिक जीवन एकाकी नहीं था। वे एक-दूसरे से कोई बहुत दूर भी नहीं थे। जलमार्ग से एक-दूसरे से वे लगे हुये थे, अत:एइन महापुरियों के निवासियों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध कोई अनहोनी बात नहीं मानी जा सकती।

'विष्णुपुराण से ज्ञात होता है कि बलराम ने कौरवों पर क्रोध करके उनके नगर हस्तिनापुर को अपने हल की नोंक से खींच कर गंगा में गिराना चाहा था, किंतु पीछे उन्हें क्षमा कर दिया; किन्तु उसके पश्चात हस्तिनापुर गंगा की ओर कुछ झुका हुआ-सा प्रतीत होने लगा था-

'बलदेवस्ततोगत्वा नगरं नागसाहृयम् बाह्योपवनमध्येऽभून्नविवेशतत्पुरम्।'[8]
'अद्याप्याघूर्णिताकारं लक्ष्यते तत्गुरं द्विज, एष प्रभावो रामस्य बलशौयोलक्षणः।'[9]

इससे जान पड़ता है कि हस्तिनापुर को गंगा की धारा के भय कौरवों के समय में ही उत्पन्न हो गया था। परीक्षित के वंशज 'निचक्षु' या 'निचक्नु' के समय में तो वास्तव में ही गंगा ने हस्तिनापुर को बहा दिया और उसे इस नगर को छोड़कर वत्स देश की प्रसिद्ध नगरी कौशाम्बी में जाकर बसना पड़ा था-

'अधिसीमकृष्णान्निचक्नुः यो गंगया पह्ते हस्तिनापुरे कौशम्बयां निवत्स्यति।'[10]

पुरातत्त्वों की खोजों से भी उपरोक्त तथ्य की पुष्टि होती है। उत्खनन से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर की सर्वप्राचीन बस्ती 1000 ई. पूर्व से पहले की अवश्य थी और यह कई शतियों तक स्थित रही। दूसरी बस्ती 90 ई. पू. के लगभग बसाई गई थी, जो 300 ई. पू. के लगभग तक रही। तीसरी बस्ती 200 ई. पू. से लगभग 200 ई. तक विद्धमान थी और अन्तिम 11वीं से 14वीं शती तक। इस प्रकार हस्तिनापुर का इतिहास कई बार बना और बिगड़ा।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 1014 |
  2. महाभारत, आदिपर्व 206, 14-दाक्षिणात्य पाठ, 15
  3. पूठ, बुलंदशहर ज़िला)
  4. =बरनावा, मेरठ ज़िला
  5. दि मानुमेंटल एंटिविवटीज एण्ड इंसक्रिप्शंस ऑव एन डब्ल्यू प्राविंसेज, 1891
  6. हस्तिनापुर, शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश, पृ. 2
  7. महाभारत आदिपर्व 125,9
  8. विष्णुपुराण 5,35,8
  9. विष्णुपुराण 5,35,37
  10. विष्णुपुराण 21,7-78; पार्जिटर-डायनेस्टजी ऑव दि कलि एज, पृ. 5

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