विदुर हिन्दू पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' के प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं। हिन्दू ग्रंथों में दिये जीवन-जगत के व्यवहार में राजा और प्रजा के दायित्वों की विधिवत नीति की व्याख्या करने वाले महापुरुषों ने महात्मा विदुर सुविख्यात हैं। उनकी विदुर नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है।
नीति
‘महाभारत’ की कथा के महत्त्वपूर्ण पात्र विदुर कौरव वंश की गाथा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। विदुर नीति जीवन-युद्ध की नीति ही नहीं, जीवन-प्रेम, जीवन-व्यवहार की नीति के रूप में अपना विशेष स्थान रखती है। राज्य-व्यवस्था, व्यवहार और दिशा निर्देशक सिद्धांत वाक्यों को विस्तार से प्रस्तावना करने वाली नीतियों में जहाँ चाणक्य नीति का नामोल्लेख होता है, वहाँ सत्-असत् का स्पष्ट निर्देश और विवेचन की दृष्टि से विदुर-नीति का विशेष महत्त्व है। व्यक्ति वैयक्तिक अपेक्षाओं से जुड़कर अनेक बार नितान्त व्यक्तिगत, एकेंद्रीय और स्वार्थी हो जाता है, वहीं वह वैक्तिक अपेक्षाओं के दायरे से बाहर आकर एक को अनेक के साथ तोड़कर, सत्-असत् का विचार करते हुए समष्टिगत भाव से समाज केंद्रीय या बहुकेंद्रीय होकर परार्थी हो जाता है।
पुरुषों के गुण
विदुर के अनुसार आठ गुण पुरुषों की ख्याति बढ़ा देते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- विदुर मनुष्य लोक के छः सुखों की व्याख्या करते हैं, नीरोग रहना, ऋणी न होना, परदेश में न रहना, अच्छे लोगों के साथ मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निडर होकर रहना- ये छः मनुष्य लोक के सुख हैं।
- महात्मा विदुर कहते हैं कि निम्न छः प्रकार के मनुष्य सदा दु:खी रहते हैं-
- ईर्ष्या करने वाला
- घृणा करने वाला
- असंतोषी
- क्रोधी
- सदा शंकित रहने वाला
- दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने