समंतपंचक कुरुक्षेत्र का ही एक अन्य नाम है। यह प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था, जिसका उल्लेख हिन्दू धार्मिक ग्रंथ महाभारत और श्रीमद्भागवत में हुआ है-
'प्रजापतेरुत्तरवेदिरुच्यते सनातनं राम समन्तपंचकम्, समीजिरे यत्र पुरादिवौकसो वरेण सत्रेण महावरप्रदाः, पुरा च राजषिंवरेण धीमता, बहूनि वर्षाष्यमितेन तेजसा, प्रकृष्टमेतत् कुरुणा महात्मना ततः कुरुक्षेत्रमितीह पप्रथे।'[1]
- उपर्युक्त अवतरण से विदित होता है कि महाभारत काल में समंतपंचक कुरुक्षेत्र का ही दूसरा नाम था। यह सरस्वती नदी के तट पर स्थित था। इसकी यात्रा बलराम ने सरस्वती के अन्य तीर्थो के साथ की थी।[2]
- 'श्रीमद्भागवत'[3] में भी समंतपंचक का उल्लेख है-
'तंज्ञात्वा मनुजा राजन् पुरस्तादेव सर्वतः, समन्तपंचकं क्षेत्रं ययुः श्रेयोविधित्सया।'
- यहाँ श्रीकृष्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर आए थे।
- जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने क्षत्रियों का संहार करके उनके ही रक्त से इस स्थान पर पाँच तालाब बनवाये और उसी रक्त से अपने पिता का श्राद्ध किया था।[4][5]
टीका टिप्पणी
- ↑ महाभारत शल्यपर्व 53 1-2
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 835 |
- ↑ श्रीमद्भागवत 10, 82, 2
- ↑ महाभारत आदिपर्व 2.4-5; महाभारत वनपर्व 117.9-10
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 512 |
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