वैतरणी

वैतरणी का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रन्थ महाभारत में हुआ है। यह एक प्रसिद्ध पौराणिक नदी है, जो यमराज के द्वार पर स्थित मानी गयी है। इसका जल बहुत गर्म और बदबूदार तथा तेज प्रवाह वाला है। कहते हैं, मृत्यु के पश्चात इसे पार करना होता है, जिसमें 'गो दान' करने वाला व्यक्ति ही सफल होता है।

  • पुराणानुसार सती के वियोग से जो अश्वधारा शिव के नेत्रों से बही उसी से यह नदी बनी जिसका विस्तार 2 योजन माना गया है।[1]
  • ये ‘गढ़वाल प्रान्त में एक अन्य नदी है, जो केदारनाथ और बदरीनाथ के रास्ते के मध्य में है और जिस पर गोपेश्वर महादेव का मन्दिर स्थित है’।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 478 |
  2. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 102 |

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