मत्तमयूर नामक एक शूरवीर क्षत्रिय जाति का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। पांडव नकुल ने मत्तमयूर क्षत्रियों पर विजय प्राप्त की थी।
- 'महाभारत सभा पर्व'[1] में एक स्थान पर वैशम्पायन जी नकुल की वीरता का वर्णन करते हुए जनमेजय से कहते हैं-
"जनमेजय! अब मैं नकुल के पराक्रम और विजय का वर्णन करूँगा। शक्तिशाली नकुल ने जिस प्रकार भगवान वासुदेव द्वारा अधिकृत पश्चिम दिशा पर विजय पायी थी, वह सुनो। बुद्धिमान माद्रीकुमार ने विशाल सेना के साथ खाण्डवप्रस्थ से निकलकर पश्चिम दिशा में जाने के लिये प्रस्थान किया। वे अपने सैनिकों के महान सिंहनाद, गर्जना तथा रथ के पहियों की घड़घड़ाहट की तुमुल ध्वनि से इस पृथ्वी को कम्पित करते हुए जा रहे थे। जाते-जाते वे बहुत धन धान्य से सम्पन्न गौओं की बहुलता से युक्त तथा स्वामि कार्तिकेय के अत्यन्त प्रिय रमणीय रोहतक पर्वत एवं उसके समीपवर्ती देश में जा पहुँचे। वहाँ उनका मत्तमयूर नाम वाले शूरवीर क्षत्रियों के साथ घोर संग्राम हुआ। उन पर अधिकार करने के पश्चात महान तेजस्वी नकुल ने समूची मरूभूमि (मारवाड़), प्रचुर धनधान्य से पूर्ण शैरीषक और महोत्य नामक देशों पर अधिकार प्राप्त कर लिया।"
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 82 |