नंदिनी गाय

वसिष्ठ ऋषि, राजा कौशिक से नंदिनी गाय का जिक़्र करते हुए

नंदिनी महर्षि वसिष्ठ की गाय थी, जो कामधेनु सुरभि की पुत्री थी। कहा जाता है कि नंदिनी का दुग्धपान करने वाला अमर हो जाता था।

  • राजा दिलीप और उनकी रानी सुदक्षिणा ने पुत्र-प्राप्ति के लिए इसकी भक्तिपूर्वक सेवा की थी, जिसके फलस्वरूप रघु का जन्म हुआ था।
  • द्यो नामक वसु ने नंदिनी को चुराने का प्रयास किया था, जिस कारण उसने महर्षि वसिष्ठ के शाप से भीष्म का जन्म ग्रहण किया था।[1][2]
  • एक बार विश्वामित्र भी नंदिनी को बलपूर्वक हरण कर लिये जा रहे थे, किन्तु नंदिनी के शरीर से अनेक सैनिक निकले, जिन्होंने विश्वामित्र को परास्त कर दिया और नंदिनी विश्वामित्र के पास रह गयी।
  • एक राजा थे नाम था कौशिक एक बार वो जंगल में शिकार करने गए और फिर रास्ता भटक गए, कई दिनों तक रास्ता न सुझा तो वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में उन्हें शरण मिली। वशिष्ठ ऋषि ने राजा और उनके सैनिको की लाजवाब खातिरदारी की जो की राजमहल में राजा तक की नहीं होती। जब राजा ने ऋषि से इसका राज पूछा तो उन्होंने नंदिनी नाम की गाय का जिक़्र किया जो की कामधेनु की संतान थी जो दूध की जगह हर तरह के पकवान देती थी। राजा की नियत ख़राब हुई और उन्होंने वशिष्ठ से उसे जबरन पाना चाहा और जब सैनिको ने गाय पर हमला बोला तो ऋषि ने अपने तेज से उन्हें समाप्त कर दिया और राजा को भी निर्बल कर दिया। इस पर क्रोध और तिरस्कार में लिप्त राजा ने पातस्या शुरू कर दी जिससे वो वशिष्ठ से भी श्रेष्ठ बन सके, तब उनका नाम विश्वामित्र पड़ा और वो राजरिशी और ब्रह्मऋषि बने। तप से डर के इंद्र ने अपनी अप्सरा मेनका को ऋषि का तप भंग करने भेजा और वो सफल भी हुई, उससे सकुन्तला नाम की पुत्री हुई जिसे विश्वामित्र ने नही अपनाया। आगे चल के उसी शकुंतला का पुत्र भारत पृथ्वी का राजा बना जिसपे आज हमारे देश का नाम है।







टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदिपर्व 99.28, 32
  2. कहीं-कहीं प्रभास वसु द्वारा भी वसिष्ठ की गाय चुराने का उल्लेख मिलता है।

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