अर्जुन का वनवास

धृतराष्ट्र से आधा राज्य लेकर पाँचों पांडव हस्तिनापुर छोड़कर खांडवप्रस्थ आ गये। तथा वहाँ उन्होंने नई राजधानी बसाई जिसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा। और तेरह वर्ष तक सुखपूर्वक राज्य किया।

नारद मुनि कि द्रौपदी को सलाह

एक दिन इंद्रप्रस्थ में नारद मुनि आए तथा द्रौपदी को सलाह दी कि वह पाँचों पांडवों के साथ रहने का यह नियम बना ले कि वह हर एक के साथ एक-एक मास रहेगी। जिससे भी यह नियम भंग हो, उसे घर छोड़कर बारह वर्ष का वनवास करना होगा। पांडव इस नियम का पालन करने लगे।

अर्जुन का नियम भंग करना

एक दिन अर्जुन राजभवन के द्वार पर बैठे थे, तभी एक ब्राह्मण रोता हुआ आया और उसने बताया कि चोर उसकी गाएँ चुरा ले गए हैं। अर्जुन उस समय निरस्त्र थे। उनके अस्त्र घर में थे, जहाँ युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ थे। अर्जुन धर्म-संकट में पड़ गए। यदि हथियार लेने घर में जाते हैं, तो बारह वर्ष का वनवास होगा और यदि गायों को नहीं छुड़ाते तो ब्राह्मण से शाप मिलेगा। अंत में वे सिर झुकाकर घर में गए तथा अस्त्र ले आए। उन्होंने ब्राह्मण की गायें छुड़ाकर ब्राह्मण को दे दी। अर्जुन ने युधिष्ठिर से बारह वर्ष के वनवास की आज्ञा माँगी। युधिष्ठिर ने बहुत समझाया, पर अर्जुन, माता कुंती तथा भाइयों से मिलकर बारह वर्ष के वनवास के लिए निकल पड़े।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 145 |


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