सोमदत्त

सोमदत्त एक सूर्यवंशी राजा वाल्हीक के पुत्र एवं भीष्म के चचेरे भाई थे।

सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध

महाभारत के द्रोणपर्व के 161 अध्याय के अनुसार सोमदत्त को अपना विशाल धनुष हिलाते देख सात्यकि ने अपने सारथि से कहा- ‘मुझे सोमदत्त के पास ले चलो। ‘सूत! आज मैं रणभूमि में अपने महाबली शत्रु सोमदत्त का वध किये बिना वहाँ से पीछे नहीं लौटूँगा। मेरी यह बात सत्य है’। तब सारथि ने शंख के समान श्वेत वर्ण वाले तथा सम्पूर्ण शब्दों का अतिक्रमण करने वाले मन के समान वेग शाली सिंधी घोड़ों को रणभूमि में आगे बढ़ाया। राजन्! मन और वायु के समान वेग शाली वे घोड़े युयुधान को उसी प्रकार ले जाने लगे, जैसे पूर्वकाल में दैत्यवध के लिये उद्यत देवराज इन्द्र को उने घोड़े ले गये थे।। वेग शाली सात्यकि को रणभूमि में अपनी ओर आते देख महाबाहु सोमदत्त बिना किसी घबराहट के उनकी ओर लौट पड़े।

वर्षा करने वाले मेघ की भाँति बाण समूहों की वृष्टि करते हुए सोमदत्त ने, जैसे बादल सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार शिनि पौत्र सात्यकि को आच्छादित कर दिया। भरतश्रेष्ठ! उस समरागंण में सम्भ्रमरहित सात्यकि ने भी अपने बाण समूहों द्वारा सब ओर से कुरु प्रवर सोमदत्त को आच्छादित कर दिया। राजन्! फिर सोमदत्त ने सात्यकि की छाती में साठ बाण मारे और सात्यकिने भी उन्हें तीखे बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया। वे दोनों नरश्रेष्ठ एक दूसर के बाणों से घायल होकर वसन्त ऋतु में सुन्दर पुष्प वाले दो विकसित पलाश वृक्षों के समान शोभा पा रहे थे। कुरुकुल और वृष्णिवंश के यश बढ़ाने वाले उन दोनों वीरों के सारे अंग खून से लथपथ हो रहे थे। वे नेत्रों द्वारा एक दूसरे को जलाते हुए से देख रहे थे। रथ मण्डल के मार्गों पर विचरते हुए वे दोनों शत्रुमर्दन वीर वर्षा करने वाले दो बादलों के समान भयंकर रूप धारण किये हुंए थे। राजेन्द्र! उने शरीर बाणों से क्षत-विक्षत होकर सब ओर से खण्डित से हो बाणविद्ध हिंसक पशुओं के समान दिखायी दे रहे थे।

राजन्! सुवर्णमय पंख वाले बाणों से व्याप्त होकर वे दोनों योद्धा वर्षकाल में जुगनुओं से व्याप्त हुए दो वृक्षों के समान सुशोभित हो रहे थे। उन दोनों महारथियों के सारे अंग उन बाणों से उद्भासित हो रहे थे, इसीलिये वे दोनों, रणक्षेत्र में उल्काओं से प्रकाशित एवं क्रोध में भरे हुए दो हाथियों के समान दिखायी देते थे। महाराज! तदनन्तर युद्धस्थल में महारथी सोमदत्त ने अर्धचन्द्राकार बाण से सात्यकि के विशाल धनुष को काट दिया। और तत्काल ही उन पर पचीस बाणों का प्रहार किया। शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करने वाले सोमदत्त नेसात्यकि को पुनः दस बाणों से घायल कर दिया। तदनन्तर सात्यकि ने अत्यन्त वेग शाली दूसरा धनुष हाथ में लेकर तुरंत ही पाँच बाणों से सोमदत्त को बींध डाला। राजन्! फिर सात्यकि ने हँसते हुए से रणभूमि में एक दूसरे भल्ल के द्वारा वाल्हीक पुत्र सोमदत्त के सुवर्णमय ध्वज को काट दिया। ध्वज को गिराया हुआ देख सम्भ्रमरहित सोमदत्त ने सात्यकि के शरीर में पचीस बाण चुन दिये। तब रणक्षेत्र में कुपित हुए सात्यकि ने भी तीखे क्षुरप्र नामक भल्ल से धनुर्धर सोमदत्त के धनुष को काट दिया। राजन्! तत्पश्चात् उन्होंने झुकी हुई गाँठ और सुवर्णमय पंख वाले सौ बाणों से टूटे दाँत वाले हाथी के समान सोमदत्त के शरीर को अनेक बार बींध दिया।

इसके बाद महारथी महाबली सोमदत्त ने दूसरा धनुष लेकर सात्यकि को बाणों की वर्षा से ढक दिया। उस युद्ध में क्रुद हुए सात्यकि ने सोमदत्त को गहरी चोट पहुँचायी और सोमदत्त ने भी अपने बाण समूह द्वारा सात्यकि को पीड़ित कर दिया। उस समय भीमसेन ने सात्यकि की सहायता के लिये सोमदत्त को दस बाण मारे। इससे सोमदत्त को तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होंने भी तीखे बाणों से भीमसेन को पीड़ित कर दिया। तत्पश्चात् सात्यकि की ओर से भीमसेन ने सोमदत्त की छाती को लक्ष्य करके एक नूतन सुदृढ़ एवं भयंकर परिघ छोड़ा। समरागंण में बड़े वेग से आते हुए उस भयंकर परिघ के कुरुवंशी सोमदत्त ने हँसते हुए से दो टुकडे़ कर डाले। लोहे का वह महान् परिघ दो खण्डों में विभक्त होकर वज्र से विदीर्ण किये गये महान् पर्वत शिखर के समान पृथ्वी पर गिर पड़ा। तदनन्तर संग्राम भूमि में सात्यकि ने एक भल्ल से सोमदत्त का धनुष काट दिया और पाँच बाणों से उनके दस्ताने नष्ट कर दिये। फिर तत्काल ही चार बाणों से उन्होंने सोमदत्त के उन उत्तम घोड़ों को प्रेतराज यम के समीप भेज दिया। इसके बाद पुरुषसिंह शिनिप्रवर सात्यकि ने हँसते हुए झुकी हुई गाँठ वाले भल्ल से सोमदत्त के सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। तत्पश्चात् सात्वतवंशी सात्यकि ने प्रज्वलित पावक के समान एक महाभयंकर, सुवर्णमय पंख वाला और शिला पर तेज किया हुआ बाण सोमदत्त पर छोड़ा। सात्यकि के द्वारा छोड़ा हुआ वह श्रेष्ठ एवं भयंकर बाण शीघ्र ही सोमदत्त की छाती पर जा पड़ा। सात्यकि के चलाये हुए उस बाण से अत्यन्त घायल होकर महारथी महाबाहु सोमदत्त पृथ्वी पर गिरे और मर गये।[1]


टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 162 (हिन्दी) (html) कृष्णकोश। अभिगमन तिथि: 11 दिसम्बर, 2015।
  • पुस्तक- महाभारत शब्दकोश | पृष्ठ- 121

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