उत्तर गीता 'महाभारत' का ही एक अंश माना जाता है।
- प्रसिद्ध है कि पाण्डवों की विजय और राज्य प्राप्ति के बाद श्रीकृष्ण के सत्संग का सुअवसर पाकर एक बार अर्जुन ने कहा कि- "भगवन! युद्धारम्भ में आपने जो 'गीता' का उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच मैं भूल गया हूँ। कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए।"
- श्रीकृष्ण बोले- "अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित्त (योगस्थ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप से भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ।" इस प्रकार श्रीकृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही 'उत्तर गीता' नाम से प्रसिद्ध है।
- स्वामी शंकराचार्य के परमगुरु गौडपादाचार्य की व्याख्या इसके ऊपर पायी जाती है, जिससे इस ग्रन्थ का गौरव और भी बढ़ गया है।
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