ध्वजवती

ध्वजवती हरिमेधा नामक मुनि की कन्या यह सूर्य की आज्ञा से पश्चिम-आकाश में स्थित है।

उत्तर ईरानी पारसी धर्म के अनुसार ‘अहुरमज्द’ ईरानियों के सबसे बड़े देव हैं, जिन्हें गुप्त युग की संस्कृत भाषा में हरिमेधा कहा गया है। इन्हीं अहुरमज्द की शक्ति या प्रभा हेरेनो कहलाती थी। उसका अंकन प्रभा मंडल के भीतर होता था और उसके दोनों ओर फहराता हुआ पट या ध्वज दिखाया जाता था। इसी कारण यहाँ उसे ध्वजवती नाम दिया गया है। प्राचीन ईरानी और सासानी कला में इस प्रभा रूपी शक्ति को युवती के रूप में आकाश में स्थित दिखाया गया है। अहुरमज्द या हरिमेधस् की उस शक्ति का प्रेमी सूर्य है, मानो सूर्य के लिए ही वह आज तक आकाश में व्याप्त है।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 62 |

  1. भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल पृ. 413

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