सतलुज नदी

सतलुज नदी

सतलुज उत्तरी भारत में बहने वाली एक नदी है। जो सदानीरा (हर मौसम में बहती है) है और जिसकी लम्बाई पंजाब में बहने वाली पाँचों नदियों में सबसे अधिक है। यह पाकिस्तान में होकर बहती है।

  • ऋग्वेद के नदीसूक्त में इसे शुतुद्रि कहा गया है।
इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं परुषण्या असिक्न्यामयदवृधे वितस्तयर्जीकीये शृणुह्मा सुषोमया।[1]
  • वैदिक काल में सरस्वती नदी 'शुतुद्रि' में ही मिलती थी।
  • परवर्ती साहित्य में इसका प्रचलित नाम 'शतद्रु या शतद्रू' (सौ शाखाओं वाली) है।
  • वाल्मीकि रामायण में केकय से अयोध्या आते समय भरत द्वारा शतद्रु के पार करने का वर्णन है। [2]
  • महाभारत में पंजाब की अन्य नदियों के साथ ही शतद्रु का भी उल्लेख है।
'शतद्रु-चंद्रभागां च यमुनां च महानदीम्, दृषद्वतीं विपाशां च विपापां स्थूलवालुकाम्'।[3]
'सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता'।
  • विष्णु पुराण[5] में शतद्रु को हिमवान पर्वत से निस्सृत कहा गया है- 'शतद्रुचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः'।
  • वास्तव में सतलुज का स्रोत रावणह्नद नामक झील है जो मानसरोवर के पश्चिम में है।
  • वर्तमान समय में सतलुज 'बियास' (विपासा) में मिलती है। किंतु 'दि मिहरान ऑफ़ सिंध एंड इट्रज ट्रिव्यूटेरीज' के लेखक रेबर्टी का मत है कि '1790 ई. के पहले सतलुज, बियास में नहीं मिलती थी। इस वर्ष बियास और सतलज दोनों के मार्ग बदल गए और वे सन्निकट आकर मिल गई।'
  • शतद्रु वैदिक शुतुद्रि का रूपांतर है तथा इसका अर्थ शत धाराओं वाली नदी किया जा सकता है। जिससे इसकी अनेक उपनदियों का अस्तित्व इंगित होता है।
  • ग्रीक लेखकों ने सतलज को हेजीड्रस कहा है। किंतु इनके ग्रंथों में इस नदी का उल्लेख बहुत कम आया है। क्योंकि अलक्षेंद्र की सेनाएं बियास नदी से ही वापस चली गई थी और उन्हें बियास के पूर्व में स्थित देश की जानकारी बहुत थोड़ी हो सकी थी।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद 10,75,5
  2. 'ह्लादिनीं दूरपारां च प्रत्यक् स्रोतस्तरंगिणीम् शतद्रुमतस्च्छीमान्नदीमिक्ष्वाकुनन्दनः' रामायण, अयोध्या कांड 71, 2 अर्थात श्रीमान इक्ष्वाकुनन्दन भरत ने प्रसन्नता प्रदान करने वाली, चौड़े पाट वाली, और पश्चिम की ओर बहने वाली शतद्रु पार की।
  3. महाभारत भीष्म पर्व 9, 15
  4. सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता श्रीमदभागवत 5, 18, 18
  5. विष्णु पुराण 2, 3, 10

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