नृग प्राचीन काल के एक ख्याति प्राप्त राजा थे, जो इक्ष्वाकु के पुत्र थे। राजा नृग अपनी दानशीलता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। एक बार भूल से राजा नृग ने पहले दान की हुई गाय को फिर से दूसरे ब्राह्मण को दान दे दिया। यद्यपि इसका ज्ञान राजा नृग को दान देते समय नहीं था, किंतु इसके फलस्वरूप ब्राह्मणों के शाप के कारण राजा नृग को गिरगिट होकर एक सहस्र वर्ष तक कुएँ में रहना पड़ा। अंत में कृष्ण अवतार के समय नृग का उद्धार हुआ।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवतपुराण 10.64.10-30; 43, 44(1); 10.37.17