ऊर्ध्वभाक हिन्दू मान्यताओं और पौराणिक महाकाव्य महाभारत के अनुसार एक अग्नि है, जो बृहस्पति के पुत्र हैं।
- इनका नामान्तर से अन्य नाम वाड़वाग्नि भी है।
- ऊर्ध्वभाक अत्यन्त भयंकर वडवानल रूप से समुद्र का जल सोखते रहते हैं, वे ही शरीर के भीतर ऊर्ध्वगति –‘उदान’ नाम से प्रसिद्ध हैं। ऊपर की ओर गतिशील होने से ही उनका नाम ‘ऊर्ध्वभाक’ है। वे प्राणवायु के आश्रित एवं त्रिकालदर्शी हैं। उन्हें बृहस्पति का पांचवां पुत्र माना गया है। प्रत्येक गृह्यकर्म में जिस अग्नि के लिये सदा घी की ऐसी धारा दी जाती है, जिसका प्रवाह उत्तराभिमुख हो और इस प्रकार दी हुई वह घृत की आहुति अभीष्ट मनोरथ की सिद्धि करती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 26 |
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