श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अध्याय 13 : श्लोक-3
यह शरीर इन्द्रियों से युक्त है। परमेश्वर हृषीकेश हैं जिसका अर्थ है ‘‘इन्द्रियों के नियामक’’। वे इन्द्रियों के आदि नियामक हैं, जिस प्रकार राजा अपने राज्य की समस्त गतिविधियों का आदि नियामक होता है, नागरिक तो गौण नियामक होते हैं। भगवान् का कथन है, ‘‘मैं ज्ञाता भी हूँ।’’ इसका अर्थ है कि वे परम ज्ञाता हैं, जीवात्मा केवल अपने विशिष्ट शरीर को ही जानता है। वैदिक ग्रन्थों में इस प्रकार का वर्णन हुआ है- क्षेत्राणि हि शरीराणि बीजं चापि शुभाशुभे। यह शरीर क्षेत्र कहलाता है, और इस शरीर के भीतर इसके स्वामी तथा साथ ही परमेश्वर का वास है, जो शरीर तथा शरीर के स्वामी दोनों को जानने वाला है। इसलिए उन्हें समस्त क्षेत्रों का ज्ञाता कहा जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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