श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 629

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-21


अर्जुन उवाच
कैर्लिग्ङैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो ।
किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते ॥21॥[1]

भावार्थ

अर्जुन ने पूछा- हे भगवान! जो इन तीनों गुणों से परे है, वह किन लक्षणों के द्वारा जाना जाता है? उसका आचारण कैसा होता है? और वह प्रकृति के गुणों को किस प्रकार लाँघता है?

तात्पर्य

इस श्लोक में अर्जुन के प्रश्न अत्यन्त उपयुक्त हैं। वह उस पुरुष के लक्षण जानना चाहता है, जिसने भौतिक गुणों को लाँघ लिया है। सर्वप्रथम वह ऐसे दिव्य पुरुष के लक्षणों के विषय में जिज्ञासा करता है कि कोई कैसे समझे कि उसने प्रकृति के गुणों के प्रभाव को लाँघ लिया है? उसका दूसरा प्रश्न है कि ऐसा व्यक्ति किस प्रकार रहता है और उसके कार्यकलाप क्या हैं? क्या वे नियमित होते हैं, या अनियमित? फिर अर्जुन उन साधनों के विषय में पूछता है, जिससे वह दिव्य स्वभाव (प्रकृति) प्राप्त कर सके। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जब तक कोई उन प्रत्यक्ष साधनों को नहीं जानता, जिनसे वह सदैव दिव्य पद पर स्थित रहे, तब तक लक्षणों के दिखने का प्रश्न ही नहीं उठता। अतएव अर्जुन द्वारा पूछे गये ये सारे प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं और भगवान उनका उत्तर देते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्जुनःउवाच= अर्जुन ने कहा; कैः= किन; लिंगैः= लक्षणों से; त्रीन्= तीनों; गुणान्= गुणां को; एतान्= ये सब; अतीतः= लाँघा हुआ; भवति= है; प्रभो= हे प्रभु; किम्= क्या; आचारः= आचरण; कथम्= कैसे; च= भी; एतान्= ये; त्रीन्= तीनों; गुणान्= गुणों को; अतिवर्तते= लाघँता है।

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