श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 480

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-7


इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि॥[1]

भावार्थ

हे अर्जुन ! तुम जो भी देखना चाहो, उसे तत्क्षण मेरे इस शरीर में देखो। तुम इस समय तथा भविष्य में भी जो भी देखना चाहते हो, उसको यह विश्वरूप दिखाने वाला है। यहाँ एक ही स्थान पर चर-अचर सब कुछ है।

तात्पर्य

कोई भी व्यक्ति एक स्थान में बैठे-बैठे सारा विश्व नहीं देख सकता। यहाँ तक कि बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी यह नहीं देख सकता कि ब्रह्माण्ड के अन्य भागों में क्या हो रहा है। किन्तु अर्जुन जैसा भक्त यह देख सकता है कि सारी वस्तुएँ जगत में कहाँ-कहाँ स्थित हैं। कृष्ण उसे शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य, जो कुछ देखना चाहे, देख सकता है। इस तरह अर्जुन कृष्ण के अनुग्रह से सारी वस्तुएँ देखने में समर्थ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इह-इसमें; एक-स्थम्-एक स्थान में; जगत्-ब्रह्माण्ड; कृत्स्नम्-पूर्णतया; पश्य-देखो; अद्य-तुरन्त; स-सहित; चर-जंगम; अचरम्-तथा अचर, जड़; मम-मेरे; देहे-शरीर में; गुडाकेश-हे अर्जुन; यत्-जो; च-भी; अन्यत्-अन्य, और; द्रष्टुम्-देखना; इच्छसि-चाहते हो।

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