श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-45
अदृष्टपूर्वं हृषितोSस्मि दृष्ट्वा भावार्थ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अदृष्ट-पूर्वम् - पहले कभी न देखा गया; हृषितः - हर्षित; अस्मि - हूँ; दृष्ट्वा - देखकर; भयेन - भय के कारण; च - भी; प्रव्यथितम् - विचलित, भयभीत; मनः - मन; मे - मेरा; तत् - वह; एव - निश्चय ही; मे - मुझको; दर्शय - दिखलाइये; देव - हे प्रभु; रूपम् - रूप; प्रसीद - प्रसन्न होइये; देव-ईश - ईशों के ईश; जगत्-निवास - हे जगत के आश्रय।
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