श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-63
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया ।
इस प्रकार मैंने तुम्हें गुह्यतर ज्ञान बतला दिया। इस पर पूरी तरह से मनन करो और तब जो चाहो सो करो। भगवान ने पहले ही अर्जुन को ब्रह्मभूत ज्ञान बतला दिया है। जो इस ब्रह्मभूत अवस्था में होता है, वह प्रसन्न रहता है, न तो वह शोक करता है, न किसी वस्तु की कामना करता है। ऐसा गुह्यज्ञान के कारण होता है। कृष्ण परमात्मा का ज्ञान भी प्रकट करते हैं। यह ब्रह्मज्ञान भी है, लेकिन यह उससे श्रेष्ठ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इति=इस प्रकार; ते=तुमको; ज्ञानम्=ज्ञान; आख्यातम्=वर्णन किया गया; गुह्यात्=गुह्य से; गुह्यतरम्=अधिक गुह्य; मया=मेरे द्वारा; विमृश्य=मनन करके; एतत्=इस; अशेषेण=पूर्णतया; यथा=जैसी; इच्छसि=इच्छा हो; तथा=वैसा ही; कुरु=करो।
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