श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 323

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवद्ज्ञान
अध्याय 7 : श्लोक-12

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि॥[1]

भावार्थ

तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, चाहे वे सतोगुण हों, रजोगुण हों या तमोगुण हों। एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ, किन्तु हूँ स्वतन्त्र। मैं प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं हूँ, अपितु वे मेरे अधीन हैं।

तात्पर्य

संसार के सारे भौतिक कार्यकलाप प्रकृति के गुणों के अधीन सम्पन्न होते हैं। यद्यपि प्रकृति के गुण परमेश्वर कृष्ण से उद्भूत हैं, किन्तु भगवान उनके अधीन नहीं होते। उदाहरणार्थ, राज्य के नियमानुसार कोई दण्डित हो सकता है, किन्तु नियम बनाने वाला राजा उस नियम के अधीन नहीं होता। इसी प्रकार प्रकृति के सभी गुण– सतो, रजो तथा तमोगुण– भगवान कृष्ण से उद्भूत हैं, किन्तु कृष्ण प्रकृति के अधीन नहीं हैं। इसीलिए वे निर्गुण हैं, जिसका तात्पर्य है कि सभी गुण उनसे उद्भूत हैं, किन्तु ये उन्हें प्रभावित नहीं करते। यह भगवान का विशेष लक्षण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ये – जो; च – तथा; एव – निश्चय ही; सात्त्विकाः – तोगुणी; भावाः – भाव; राजसाः – रजोगुणी; तामसाः – तमोगुणी; च – भी; ये – जो; मत्तः – मुझसे; एव – निश्चय ही; इति – इस प्रकार; तान् – उनको; विद्धि – जानो; न – नहीं; तु – लेकिन; अहम् – मैं; तेषु – उनमें; ते – वे; मयि – मुझमें।

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