श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
दिव्य ज्ञान
अध्याय 4 : श्लोक-5
श्रीभगवानुवाच
श्रीभगवान ने कहा – तुम्हारे तथा मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं। मुझे तो उन सबका स्मरण है, किन्तु हे परंतप! तुम्हें उनका स्मरण नहीं रह सकता है।
ब्रह्मसंहिता में [2] हमें भगवान् के अनेकानेक अवतारों की सुचना प्राप्त होती है। उसमें कहा गया है– अद्वैतमच्युतमनादिमनन्तरूपमाद्यं पुराणपुरुषं नवयौवेन च। “मैं उन आदि पुरुष श्री भगवान गोविन्द की पूजा करता हूँ जो अद्वैत,अच्युत तथा अनादि हैं। यद्यपि अनन्त रूपों में उनका विस्तार है, किन्तु तो भी वे आद्य, पुरातन तथा नित्य नवयौवन युक्त रहते हैं। श्री भगवान के ऐसे सच्चिदा नन्द रूप को प्रायः श्रेष्ठ वैदिक विद्वान जानते हैं, किन्तु विशुद्ध अनन्य भक्तों को तो उनके दर्शन नित्य होते रहते हैं।” ब्रह्मसंहिता में यह भी कहा गया है – रामादिमुर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन् नानावतारकरोद् भुवनेषु किन्तु। “मैं उन श्रीभगवान गोविन्द की पूजा करता हूँ जो राम, नृसिंह आदि अवतारों तथा अंशावतारों में नित्य स्थित रहते हुए भी कृष्ण नाम से विख्यात आदि-पुरुष हैं और जो स्वयं भी अवतरित होते हैं।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री-भगवान् उवाच – श्रीभगवान् ने कहा; बहूनि – अनेक; मे – मेरे; व्यतीतानि – बीत चुके; जन्मानि – जन्म; तव – तुम्हारे; च – भी; अर्जुन – हे अर्जुन; तानि – उन; अहम् – मैं; वेद – जानता हूँ; सर्वाणि – सबों को; न – नहीं; तवम् – तुम; वेत्थ – जानते हो; परन्तप – हे शत्रुओं का दमन करने वाले।
- ↑ 5.33
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