श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 498

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-32

कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति
सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।[1]

भावार्थ

भगवान् ने कहा- समस्त जगतों को विनष्ट करने वाला काल मैं हूँ और मैं यहाँ समस्त लोगों का विनाश करने के लिए आया हूँ। तुम्हारे (पाण्डवों के) सिवा दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जाएँगे।

तात्पर्य
यद्यपि अर्जुन जानता था कि कृष्ण उसके मित्र तथा भगवान् हैं, तो भी वह कृष्ण के विविध रूपों को देखकर चकित था। इसलिए उसने इस विनाशकारी शक्ति के उद्देश्य के बारे में पूछताछ की। वेदों में लिखा है कि परम सत्य हर वस्तु को, यहाँ तक कि ब्राह्मणों को भी, नष्ट कर देते हैं। कठोपनिषद् का (1.2.25) वचन है-



यस्य ब्रह्म च क्षत्रं च उभे भवत ओदनः ।

मृत्युर्यस्योपसेचनं क इत्था वेद यत्र सः ॥

अन्ततः सारे ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा अन्य सभी परमेश्वर द्वारा काल-कवलित होते हैं। परमेश्वर का यह रूप सबका भक्षण करने वाला है और यहाँ पर कृष्ण अपने को सर्वभक्षी काल के रूप में प्रस्तुत करते हैं। केवल कुछ पाण्डवों के अतिरिक्त युद्धभूमि में आये सभी लोग उनके द्वारा भक्षित होंगे ।

अर्जुन लड़ने के पक्ष में न था, वह युद्ध न करना श्रेयस्कर समझता था, क्योंकि तब किसी प्रकार की निराशा न होती। किन्तु भगवान् का उत्तर है कि यदि वह नहीं लड़ता, तो भी सारे लोग उनके ग्रास बनते, क्योंकि यही उनकी इच्छा है। यदि अर्जुन नहीं लड़ता, तो वे सब अन्य विधि से मरते। मृत्यु रोकी नहीं जा सकती, चाहे वह लड़े या नहीं। वस्तुतः वे पहले से मृत हैं। काल विनाश है और परमेश्वर की इच्छानुसार सारे संसार को विनष्ट होना है। यह प्रकृति का नियम है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीभगवान् उवाच - भगवान् ने कहा; कालः - काल; अस्मि - हूँ; लोक - लोकों का; क्षय-कृत - नाश करने वाला; प्रवृद्धः - महान; लोकान् - समस्त लोगों को; समाहर्तुम् - नष्ट करने वाला; प्रवृत्तः - लगा हुआ; ऋते - बिना; अपि - भी; त्वाम् - आपको; न - कभी नहीं; भविष्यन्ति - होंगे; सर्वे - सभी; ये - जो; अवस्थिताः - स्थित; प्रति-अनीकेषु - विपक्ष में; योधाः - सैनिक।

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