श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
भगवत्प्राप्ति
अध्याय 8 : श्लोक- 17
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्मणो विदु:।
मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का दिन बनता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है।
भौतिक ब्रह्माण्ड की अवधि सीमित है। यह कल्पों के चक्र रूप में प्रकट होती है। यह कल्प ब्रह्मा का एक दिन है जिसमें चतुर्युग– सत्य, त्रेता, द्वापर तथा कलि– के एक हजार चक्र होते हैं। सतयुग में सदाचार, ज्ञान तथा धर्म का बोलबाला रहता है और अज्ञान तथा पाप का एक तरह से नितान्त अभाव होता है। यह युग 17,28,000 वर्षों तक चलता है। त्रेता युग में पापों का प्रारम्भ होता है और यह युग 12,96,000 वर्षों तक चलता है। द्वापर युग में सदाचार तथा धर्म का ह्रास होता है और पाप बढ़ते हैं। यह युग 8,64,000 वर्षों तक चलता है। सबसे अन्त में कलियुग[2] आता है जिसमें कलह, अज्ञान, अधर्म तथा पाप का प्राधान्य रहता है और सदाचार का प्रायः लोप हो जाता है। यह युग 4,32,000 वर्षों तक चलता है। इस युग में पाप यहाँ तक बढ़ जाते हैं कि इस युग के अन्त में भगवान स्वयं कल्कि अवतार धारण करते हैं, असुरों का संहार करते हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं और दूसरे सतयुग का शुभारम्भ होता है। इस तरह यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। ये चारों युग एक सहस्र चक्र कर लेने पर ब्रह्मा के एक दिन के तुल्य होते हैं। इतने ही वर्षों की उनकी रात्रि होती है। ब्रह्मा के ये 100 वर्ष गणना के अनुसार पृथ्वी के 31,10,40,00,00,00,000 वर्ष के तुल्य हैं। इन गणनाओं से ब्रह्मा की आयु अत्यन्त विचित्र तथा न समाप्त होने वाली लगती है, किन्तु नित्यता की दृष्टि से यह बिजली की चमक जैसी अल्प है। कारणार्णव में असंख्य ब्रह्मा अटलांटिक सागर में पानी के बुलबुलों के समान प्रकट होते और लोप होते रहते हैं। ब्रह्मा तथा उनकी सृष्टि भौतिक ब्रह्माण्ड के अंग हैं, फलस्वरूप निरन्तर परिवर्तित होते रहते हैं। इस भौतिक ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा भी जन्म, जरा, रोग और मरण की क्रिया से अछूते नहीं हैं। किन्तु चूँकि ब्रह्मा इस ब्रह्माण्ड की व्यवस्था करते हैं, इसीलिए वे भगवान की प्रत्यक्ष सेवा में लगे रहते हैं। फलस्वरूप उन्हें तुरन्त मुक्ति प्राप्त हो जाती है। यहाँ तक कि सिद्ध संन्यासियों को भी ब्रह्मलोक भेजा जाता है, जो इस ब्रह्माण्ड का सर्वोच्च लोक है। किन्तु कालक्रम से ब्रह्मा तथा ब्रह्मलोक के सारे वासी प्रकृति के नियमानुसार मरणशील होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सहस्र – एक हजार; युग – युग; पर्यन्तम् – सहित; अहः – दिन; यत् – जो; ब्रह्मणः – ब्रह्मा का; विदुः – वे जानते हैं; रात्रिम् – रात्रि; युग – युग; सहस्रान्ताम् – इसी प्रकार एक हजार बाद समाप्त होने वाली; ते – वे; अहः-रात्र – दिन-रात; विदः – जानते हैं; जनाः – लोग।
- ↑ जिसे हम विगत 5 हजार वर्षों से भोग रहे हैं
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