श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 623

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-17

सत्त्वातसंजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥17॥[1]

भावार्थ

सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं।

तात्पर्य

चूँकि वर्तमान सभ्यता जीवों के लिए अधिक अनुकूल नहीं है, अतएव उनके लिए कृष्णभावनामृत की संस्तुति की जाती है। कृष्णभावनामृत के माध्यम से समाज में सतोगुण विकसित होगा। सतोगुण विकसित हो जाने पर लोग वस्तुओं को असली रूप में देख सकेंगे। तमोगुण में रहने वाले लोग पशु-तुल्य होते हैं और वे वस्तुओं को स्पष्ट रूप में नहीं देख पाते। उदाहरणार्थ, तमोगुण में रहने के कारण लोग यह नहीं देख पाते कि जिस पशु का वे वध कर रहे हैं, उसी के द्वारा वे अगले जन्म में मारे जाएँगे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सत्त्वात्= सतोगुण से; सज्जायते= उत्पन्न होता है; ज्ञानम्= ज्ञान; रजसः= रजोगुण से; लोभः= लालच; एव= निश्चय ही; च= भी; प्रमाद= पागलपन; मोहौ= तथा मोह; तमसः= तमोगुण से; भवतः= हेाता है; अज्ञानम्= अज्ञान; एव= निश्चय ही; च= भी।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः