श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-30
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता- भावार्थ अध्याय-11 : श्लोक-31
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो भावार्थ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लेलिह्यसे – चाट रहे हैं; ग्रसमानः – निगलते हुए; समन्तात् – समस्त दिशाओं से; लोकान् – लोगों को; समग्रान् – सभी; वदनैः – मुखों से; ज्वलब्धिः – जलते हुए; तेजोभिः – तेज से; आपूर्य – आच्छादित करके; जगत् – ब्रह्माण्ड को; समग्रम् – समस्त; भासः – किरणें; तव – आपकी; उग्राः – भयंकर; प्रतपन्ति – झुलसा रही हैं; विष्णो – हे विश्वव्यापी भगवान्।
- ↑ आख्याहि – कृपया बताएं; मे – मुझको; कः – कौन; भवान् – आप; उग्र-रूपः – भयानक रूप; नमः-अस्तु – नमस्कार को; ते – आपको; देव-वर – हे देवताओं में श्रेष्ठ; प्रसीद – प्रसन्न हों; विज्ञातुम् – जानने के लिए; इच्छामि – इच्छुक हूँ; भवन्तम् – आपको; आद्यम् – आदि; न – नहीं; हि – निश्चय ही; प्रजानामि – जानता हूँ; तव – आपका; प्रवृत्तिम् – प्रयोजन।
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