श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 32

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Prev.png

कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
अध्याय-1 : श्लोक-43

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरके नियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम॥[1]

भावार्थ

हे प्रजापालक कृष्ण! मैनें गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं।

तात्पर्य
 

अर्जुन अपने तर्कों को अपने निजी अनुभव पर न आधारित करके आचार्यों से जो सुन रखा है उस पर आधारित करता है। वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है। जिस व्यक्ति ने पहले से ज्ञान प्राप्त कर रखा है, उस व्यक्ति की सहायता के बिना कोई भी वास्तविक ज्ञान तक नहीं पहुँच सकता। वर्णाश्रम-धर्म की एक पद्धति के अनुसार मृत्यु के पूर्व मनुष्य को पापकर्मों के लिए प्रायश्चित्त करना होता है। जो पापात्मा है, उसे इस विधि का अवश्य उपयोग करना चाहिए। ऐसा किये बिना मनुष्य निश्चित रूप से नरक भेजा जायेगा जहाँ उसे अपने पापकर्मों के लिए कष्टमय जीवन बिताना होगा।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्सन्न – विनष्ट; कुल-धर्माणाम् – पारिवारिक परम्परा वाले; मनुष्याणाम् – मनुष्यों का; जनार्दन – हे कृष्ण; नरके – नरक में; नियतम् – सदैव; वासः – निवास; भवति – होता है; इति – इस प्रकार; अनुशुश्रुम – गुरु-परम्परा से मैनें सुना है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः