श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 770

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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उपसंहार- संन्यास की सिद्धि
अध्याय 18 : श्लोक-41

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणै: ॥41॥[1]

भावार्थ

हे परन्तप! ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों तथा शूद्रों में प्रकृति के गुणों के अनुसार उनके स्वभाव द्वारा उत्पन्न गुणों के द्वारा भेद किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ब्राह्मण= ब्राह्मण; क्षत्रिय= क्षत्रिय; विशाम्= तथा वैश्यों का; शूद्राणाम्= शूद्रों का; च= तथा; परन्तप= हे शत्रुओं के विजेता; कर्माणि= कार्यकलाप; प्रविभक्तानि= विभाजित है; स्वभाव= अपने स्वभाव से; प्रभवैः= उत्पन्न; गुणैः= गुणों के द्वारा।

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