श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 636

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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पुरुषोत्तम योग
अध्याय 15 : श्लोक-1


श्रीभगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥1॥[1]

भावार्थ

भगवान ने कहा- कहा जाता है कि एक शाश्वत अश्वत्थ वृक्ष है, जिसकी जड़ें तो ऊपर की ओर हैं, और शाखाएँ नीचे की ओर तथा पत्तियाँ वैदिक स्त्रोत हैं। जो इस वृक्ष को जानता है, वह वेदों का ज्ञाता है।

तात्पर्य

भक्तियोग की महता की विवेचना के बाद यह पूछा जा सकता है, ‘‘वेदों का क्या प्रयोजन है?’’ इस अध्याय में बताया गया है कि वैदिक अध्ययन का प्रयोजन कृष्ण को समझना है। अतएव जो कृष्ण भावना भावित है, जो भक्ति में रत है, वह वेदों को पहले से जानता है। इस भौतिक जगत के वन्दन की तुलना अश्वत्थ के वृक्ष से की गई है। जो व्यक्ति सकाम कर्मों में लगा है, उसके लिये इस वृक्ष का कोई अन्त नहीं है। वह एक शाखा से दूसरी में और दूसरी से तीसरी में घूमता रहता है। इस जगत रूपी वृक्ष का कोई अन्त नहीं है और जो इस वृक्ष में आसक्त है, उसकी मुक्ति की कोई सम्भावना नहीं है। वैदिक स्त्रोत, जो आत्मोन्नति के लिये हैं, वे ही इस वृक्ष के पत्ते हैं। इस वृक्ष की जड़े ऊपर की ओर बढ़ती हैं, क्योंकि वे इस ब्रह्माण्ड के सर्वोच्च लोक से प्रारम्भ होती हैं, जहाँ ब्रह्मा स्थित है। यदि कोई इस मोह रूपी अविनाशी वृक्ष को समझ लेता है, तो इससे बाहर निकल सकता है।

बाहर निकलने की इस विधि को जानना आवश्यक है। पिछले अध्यायों में बताया जा चुका है कि भवबन्धन से निकलने की कई विधियाँ हैं। हम तेरहवें अध्याय तक यह देख चुके हैं कि भगवदभक्ति ही सर्वोत्कृष्ट विधि है। भक्ति का मूल सिद्धान्त है- भक्ति कार्यों से विरक्ति तथा भगवान की दिव्य सेवा में अनुरिक्त। इस अध्याय के प्रारम्भ में संसार से आशक्ति तोड़ने की विधि का वर्णन हुआ है। इस संसार की जड़े ऊपर को बढ़ती हैं। इसका अर्थ है कि ब्रह्माण्ड के सर्वोच्च लोक से पूर्ण भौतिक पदार्थ से यह प्रक्रिया शुरू होती है। वहीं से सारे ब्रह्माण्ड का विस्तार होता है, जिसमें अनेक लोग उनकी शाखाओं के रूप में होते हैं। इसके फल जीवों के कर्मों के फल के, अर्थात धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के, घोतक हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीभगवान् उवाच= भगवान् ने कहा; ऊर्ध्‍व-मूलम्= ऊपर की ओर जडें; अधः= नीचे की ओर; शाखम्= शाखाएँ; अश्वत्थम्= अश्वत्थ वृक्ष को; प्राहुः= कहा गया है; अव्ययम्= शाश्वत; छन्दांसि= वैदिक स्तोत्र; यस्य= जिसके; पर्णानि= पत्ते; यः= जो कोई; तम्= उसको; वेद= जानता है; सः= वह; वेदवित्= वेदों का ज्ञाता।

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