श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-49
मा ते व्यथा मा च विमूढ़भावो भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मा - न हो; ते - तुम्हें; व्यथा - पीड़ा, कष्ट; मा - न हो; च - भी; विमूढ-भावः - मोह; दृष्ट्वा - देखकर; रूपम् - रूप को; घोरम् - भयानक; ईदृक् - इस; व्यपेत-भीः - सभी प्रकार के भय से मुक्त; प्रीत-मनाः - प्रसन्न चित्त; पुनः - फिर; त्वम् - तुम; तत् - उस; एव - इस प्रकार; मे - मेरे; रूपम् - रूप को; इदम् - इस; प्रपश्य - देखो ।
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