श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 455

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-24


पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः।।[1]

भावार्थ

हे अर्जुन ! मुझे समस्त पुरोहितों में मुख्य पुरोहित ब्रहस्पति जानो। मैं ही समस्त सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ और समस्त जलाशयों में समुद्र हूँ।

तात्पर्य

इन्द्र स्वर्ग का प्रमुख देवता है और स्वर्ग का राजा कहलाता है। जिस लोक में उसका शासन है वह इन्द्रलोक कहलाता है। बृहस्पति राजा इन्द्र के पुरोहित हैं और चूँकि इन्द्र समस्त राजाओं का प्रधान है, इसीलिए बृहस्पति समस्त पुरोहितों में मुख्य हैं। जैसे इन्द्र सभी राजाओं के प्रमुख हैं, इसी प्रकार पार्वती तथा शिव के पुत्र स्कन्द या कार्तिकेय समस्त सेनापतियों के प्रधान हैं। समस्त जलाशयों में समुद्र सबसे बड़ा है। कृष्ण के ये स्वरूप उनकी महानता के ही सूचक हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुरोधसाम्-समस्त पुरोहितों में; च-भी; मुख्यम्-प्रमुख; माम्-मुझको; विद्धि-जानो; पार्थ-हे पृथापुत्र; ब्रहस्पतिम्-ब्रहस्पति; सेनानीनाम्-समस्त सेनानायकों में से; अहम्-मैं हूँ; स्कन्दः-कार्तिकेय; सरसाम्-समस्त जलाशयों में; अस्मि-मैं हूँ; सागरः-समुद्र।

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