श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-47
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीभगवान् उवाच - श्रीभगवान् ने कहा; मया - मेरे द्वारा; प्रसन्नेन - प्रसन्न; तव - तुमको; अर्जुन - हे अर्जुन; इदम् - इस; रूपम् - रूप को; परम् - दिव्य; दर्शितम् - दिखाया गया; आत्म-योगात् - अपनी अन्तरंगा शक्ति से; तेजःमयम् - तेज से पूर्ण; विश्वम् - समग्र ब्रह्माण्ड को; अनन्तम् - असीम; आद्याम् - आदि; यत् - जो; मे - मेरा; त्वत् अन्येन - तुम्हारे अतिरिक्त अन्य के द्वारा; न दृष्ट पूर्वम् - किसी ने पहले नहीं देखा।
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