श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 706

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्रद्धा के विभाग
अध्याय 17 : श्लोक-8


आयु: सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना: ।
रस्या: स्निग्धा: स्थिरा हृद्या आहारा: सात्त्विकप्रिया: ॥8॥[1]

भावार्थ

जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है। ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा हृदय को भोगने वाला होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आयुः= जीवन काल; सत्त्व= अस्तित्व; बल= बल; आरोग्य= स्वास्थ्य; सुख= सुख; प्रीति= तथा संतोष; विवर्धनाः= बढ़ाते हुए; रस्याः= रस से युक्त; स्निग्धाः= चिकना; स्थिराः= सहिष्णु; हृद्याः= हृदय को भाने वाले; आहाराः= भोजन; सात्त्विक= सतोगुणी; प्रियाः= अच्छे लगने वाले।

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