श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 285

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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ध्यानयोग
अध्याय 6 : श्लोक-29

सर्वभूतस्थमात्मनं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥[1]

भावार्थ

वास्तविक योगी समस्त जीवों में मुझको तथा मुझमें समस्त जीवों को देखता है। निस्सन्देह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति मुझ परमेश्वर को सर्वत्र देखता है।

तात्पर्य

कृष्णभावनाभावित योगी पूर्ण द्रष्टा होता है क्योंकि वह परब्रह्म कृष्ण को हर प्राणी के हृदय में परमात्मा रूप में स्थित देखता है। ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशोऽर्जुन तिष्ठति। अपने परमात्मा रूप में भगवान् एक कुत्ते तथा एक ब्राह्मण दोनों के हृदय में स्थित होते हैं। पूर्णयोगी जानता है कि भगवान नित्यरूप में दिव्य हैं और कुत्ते या ब्राह्मण में स्थित होने से भी भौतिक रूप से प्रभावित नहीं होते। यही भगवान् की परम निरपेक्षता है। यद्यपि जीवात्मा भी एक-एक हृदय में विद्यमान है, किन्तु वह एकसाथ समस्त हृदयों में (सर्वव्यापी) नहीं है। आत्मा तथा परमात्मा का यही अन्तर है। जो वास्तविक रूप से योगाभ्यास करने वाला नहीं है, वह इसे स्पष्ट रूप में नहीं देखता। एक कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कृष्ण को आस्तिक तथा नास्तिक दोनों में देख सकता है। स्मृति में इसकी पुष्टि इस प्रकार हुई है– आततत्त्वाच्च मातृत्वाच्च आत्मा हि परमो हरिः। भगवान सभी प्राणियों का स्त्रोत होने के कारण माता और पालनकर्ता के समान हैं। जिस प्रकार माता अपने समस्त पुत्रों के प्रति समभाव रखती है, उसी प्रकार परम पिता (या माता) भी रखता है। फलस्वरूप परमात्मा प्रत्येक जीव में निवास करता है।

बाह्य रूप से भी प्रत्येक जीव भगवान की शक्ति (भगवदशक्ति) में स्थित है। जैसा कि सातवें अध्याय में बताया जाएगा, भगवान की दो मुख्य शक्तियाँ हैं– परा तथा अपरा। जीव पराशक्ति का अंश होते हुए भी अपराशक्ति से बद्ध है। जीव सदा ही भगवान की शक्ति में स्थित है। प्रत्येक जीव किसी न किसी प्रकार भगवान में ही स्थित रहता है। योगी समदर्शी है क्योंकि वह देखता है कि सारे जीव अपने-अपने कर्मफल के अनुसार विभिन्न स्थितियों में रहकर भगवान् के दास होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक अवस्था में जीव ईश्वर का दास है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति में यह समदृष्टि पूर्ण होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्व-भूत-स्थम् – सभी जीवों में स्थित; आत्मानम् – परमात्मा को; सर्व – सभी; भूतानि – जीवों को; च – भी; आत्मनि – आत्मा में; ईक्षते – देखता है; योग-युक्त-आत्मा – कृष्णचेतना में लगा व्यक्ति; सर्वत्र – सभी जगह; सम-दर्शनः – समभाव से देखने वाला।

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