श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 616

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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प्रकृति के तीन गुण
अध्याय 14 : श्लोक-11


सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते ।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ॥11॥[1]

भावार्थ

सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।

तात्पर्य

शरीर में नौ द्वार हैं- दो आँखें, दो कान, दो नथुने, मुँह, गुदा तथा उपस्थ। जब प्रत्येक द्वार सत्त्व के लक्षण से दीपित हो जायें, तो समझना चाहिए कि उसमें सतोगुण विकसित हो चुका है। सतोगुण में सारी वस्तुएँ अपनी सही स्थिति में दिखती हैं, सही-सही सुनाई पड़ता है और सही ढंग से उन वस्तुओं का स्वाद मिलता है। मनुष्य को अन्तः तथा बाह्य शुद्ध हो जाता है। प्रत्येक द्वार में सुख के लक्षण उत्पन्न दिखते हैं और यही स्थिति होती है सत्त्वगुण की।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्व-द्वारेषु= सारे दरवाजों में; देहे अस्मिन्= इस शरीर में; प्रकाशः= प्रकाशित करने का गुण; उपजायते= उत्पन्न होता है; ज्ञानम्= ज्ञान; यदा= जब; तदा= उस समय; विद्यात्= जानो; विवृद्धम्= बढा हुआ; सत्त्वम्= सतोगुण; इति उत= ऐसा कहा गया है।

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