श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 461

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्री भगवान का ऐश्वर्य
अध्याय-10 : श्लोक-30


प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।[1]

भावार्थ

दैत्यों में मैं भक्तराज प्रह्लाद हूँ, दमन करने वालों में काल हूँ, पशुओं में सिंह हूँ, तथा पक्षियों में गरुड़ हूँ।

तात्पर्य

दिति तथा अदिति दो बहनें थीं। अदिति के पुत्र आदित्य कहलाते हैं और दिति के दैत्य। सारे आदित्य भगवद्भक्त निकले और सारे दैत्य नास्तिक। यद्यपि प्रहलाद का जन्म दैत्य कुल में हुआ था, किन्तु वे बचपन से ही परम भक्त थे। अपनी भक्ति तथा दैवी गुण के कारण वे कृष्ण के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

दमन के अनेक नियम हैं, किन्तु काल इस संसार की हर वस्तु को क्षीण कर देता है, अतः वह कृष्ण का प्रतिनिधित्व कर रहा है। पशुओं में सिंह सबसे शक्तिशाली तथा हिंसक होता है और पक्षियों के लाखों प्रकारों में भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ सबसे महान है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रह्लादः-प्रह्लाद; च-भी; अस्मि-हूँ; दैत्यानाम्-असुरों में; कालः-काल; कलयताम्-दमन करने वालों में; अहम्-मैं हूँ; मृगाणाम्-पशुओं में; च-तथा; मृग-इन्द्रः-सिंह; अहम्-मैं हूँ; वैनतेयः-गरुड़; च-भी; पक्षिणाम्-पक्षियों में।

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