श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
विराट रूप
अध्याय-11 : श्लोक-51
अर्जुन उवाच। भावार्थ तात्पर्य |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अर्जुनःउवाच - अर्जुन ने कहा; दृष्ट्वा - देखकर; इदम् - इस; मानुषम् - मानवी; रूपम् - रूप को; तव - आपके; सौम्यम् - अत्यन्त सुन्दर; जनार्दन - हे शत्रुओं को दण्डित करने वाले; इदानीम् - अब; अस्मि - हूँ; संवृत्तः - स्थिर; स-चेताः - अपनी चेतना में; प्रकृतिम् - अपनी प्रकृति को; गतः - पुनः प्राप्त हूँ ।
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