श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 697

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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श्रद्धा के विभाग
अध्याय 17 : श्लोक-1


अर्जुन उवाच
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: ।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: ॥1॥[1]

भावार्थ

अर्जुन ने कहा- हे कृष्ण! जो लोग शास्त्र के नियमों का पालन न करके अपनी कल्पना के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी स्थिति कौन सी है? वे सतोगुणी हैं, रजोगुणी हैं या तमोगुणी?

तात्पर्य

चतुर्थ अध्याय में उन्तालीसवें श्लोक में कहा गया है कि किसी विशेष प्रकार की पूजा में निष्ठावान व्यक्ति क्रमशः ज्ञान की अवस्था को प्राप्त होता है और शान्ति तथा सम्पन्नता की सर्वोच्च सिद्धावस्था तक पहुँचता है। सोलहवें अध्याय में यह निष्कर्ष निकलता है कि जो शास्त्रों के नियमों का पालन नहीं करता, वह असुर है और जो निष्ठापूर्वक इन नियमों का पालन करता है, वह देव है। अब यदि कोई ऐसा निष्ठावान व्यक्ति हो, जो ऐसे कतिपय नियमों का पालन करता हो, जिनका शास्त्रों में उल्लेख न हो, तो उसकी स्थिति क्या होगी? अर्जुन के इस सन्देह का स्पष्टीकरण कृष्ण द्वारा होना है। क्या वे लोग जो किसी व्यक्ति को चुनकर उस पर किसी भगवान के रूप में श्रद्धा दिखाते हैं, सतो, रजो या तमोगुण में पूजा करते हैं? क्या ऐसे व्यक्तियों को जीवन की सिद्धावस्था प्राप्त हो पाती है? क्या वे वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उच्चतम सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो पाते हैं? जो लोग शास्त्रों के विधि-विधानों का पालन नहीं करते, किन्तु जिनकी किसी पर श्रद्धा होती है और जो देवी, देवताओं तथा मनुष्यों की पूजा करते हैं, क्या उन्हें सफलता प्राप्त होती है? अर्जुन इन प्रश्नों को श्रीकृष्ण से पूछ रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्जुनःउवाच= अर्जुन ने कहा; ये= जो; शास्त्र-विधिम्= शास्त्रों के विधान को; उत्सृज्य= त्यागकर; यजन्ते= पूजा करते हैं; श्रद्धया= पूर्ण श्रद्धा से; अन्विताः= युक्त; तेषाम्= उनकी; निष्ठा= श्रद्धा; तु= लेकिन; का= कौन सी; कृष्ण= हे कृष्ण; सत्त्वम्= सतोगुणी; आहो= अथवा अन्य; रजः= रजोगुणी; तमः= तमोगुणी

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